ये जिन्दगी
हादसों की इमारत है,
जिसकी एक एक ईंट के तले दबे
इस जिन्दगी के
कुछ न भूलने वाले
हादसे ही तो हैं.
इसको आकार देने में
कभी मन से
कभी बेमन से
दायित्वों को ओढ़े
ख़ामोशी से
यंत्रवत सक्रिय
ये हाथ और पैर चलते रहे .
मष्तिष्क और ह्रदय
मेरी धरोहर थे ,
जो अपनी वेदनाओं से
कोरे कागजों को रंगते रहे.
ये ही मेरी शक्ति है,
ज्वालामुखी -
जो धधक रही है,
विस्फोट न हो
सर्वनाश न हो
इसीलिए तो
ये छंद रच रहे हैं.
तमाम आक्रोश, विवशताओं की देन
आंसुओं का जहर
कहीं मुझे ही न मार दे
बस इसी लिए
ये जो सृजन है
वह आक्रोश औ' विवशता को
नए पंख दे देता है
और मन
हल्का होकर
फिर उड़ान भरने के लगता है.
शनिवार, 29 मई 2010
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12 टिप्पणियां:
सटीक....शब्द सृजन ही वेदनाओं को कम करने में सहायक होता है....और ये गरल पी कर भी इंसान जूझता रहता है....अच्छी अभिव्यक्ति
आपका सृजन सार्थक है, बहुत ही सुन्दर रचना!
सृजन
आक्रोश औ' विवशता को
नए पंख दे देता है... bilkul sahi
आंसुओं का जहर
कहीं मुझे ही न मार दे
सुंदर रचना
तमाम आक्रोश, विवशताओं की देन
आंसुओं का जहर
कहीं मुझे ही न मार दे
बस इसी लिए
ये जो सृजन है
शत प्रतिशत सहमत....
सटीक अभिव्यक्ति
आपकी लिखी रचना मंगलवार 16 मई 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
कभी कभी किसी दूसरे के शब्द बिल्कुल अपने ही हृदय के उद्गारों जैसे प्रतीत होते हैं। यह रचना इस बात का प्रमाण है।
ये जिन्दगी
हादसों की इमारत है…बहुत खूब👌
सही कहा विचारों के बबंडर को सृजन में ढाल मन हल्का करना ...
तमाम आक्रोश, विवशताओं की देन
आंसुओं का जहर
कहीं मुझे ही न मार दे
बस इसी लिए
ये जो सृजन है
बहुत ही सटीक... सार्थक
लाजवाब सृजन।
सृजन ही सकारात्मकता है जीवन के तमाम विरोधाभासी परिस्थितियों के बावजूद एक आशा है।
गहन अभिव्यक्ति।
सादर।
उद्वेलित करती हुई अभिव्यक्ति।
जब वेदना शब्दों में ढल जाती है तो सृजन को नई उड़ान मिल जाती है🙏
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