दर्द को हाशिये में डालो,
मुस्कानों के
सिलसिले से
एक इबारत नयी लिखो,
उनके बीच बस
बिंदियाँ दर्दों की हों.
गर मुस्कानें कम लगें
खोज लो बचपन में
निर्दोष, खामोश
जिंदगियों में और
उनको बाँट लो
जग के सारे गम
उनके सामने
बहुत छोटे पड़ जायेंगे.
मुस्कानों की चमक में
गम कहीं दब जायेंगे
खिले चेहरों पर
गर
कहीं संजीदगी आती भी है
मुस्कराओ और मुस्करा कर
सारे ग़मों को बाँट लो. आंसुओं से भरे चेहरे
मुसकान से भर जायेंगे .
15 टिप्पणियां:
वाह...बहुत सुन्दर....बस बिंदियाँ दर्द की हों...क्या बात है..और बचपन में मुस्कान को ढूंढ लो....बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
bahut sundar aur antim chitr to apne aap me bahut kuch kehta hai....umda rachna
इस दर्द ही दर्द भरी दुनिया को दिलासा देती पोस्ट / उम्दा कविता /
वाह क्या कहूं अब? दर्द ही दर्द को खत्म कर देगा, सच है. जीवंत चित्र. सुन्दर रचना.
muskaan ke silsile se nai ibarat ... bahut badhiyaa
दर्द ही जब दर्द मिटाने का हथियार बन जाये
सुन्दर
और चित्र कितना जीवंत लगाया है आपने
चित्रों के साथ भावों का संगम...बहुत उम्दा!
kash , muskan ki chamak itni gahri tajindagi rahe.........taaki usme har gam chhip jayen......aur fir se wo befikri dikhe.......jo bachpan ki yaad dila de.......:)
bahut khub Rekha di......!!
vaah vaah vaah kitni achchi khubsurat baat kahi hai ...aameen.
अच्छी रचना के लिए बधाई।
दर्द को हाशिये में डालो,
मुस्कानों के
सिलसिले से
एक इबारत नयी लिखो,
उनके बीच बस
बिंदियाँ दर्दों की हों.
खूबसूरत अभिव्यक्ति,सुन्दर रचना.चित्र-क्या बात है.
क्या बात कही आपने...उफ्फ्फ....
दिल को छू लेने वाली बहुत ही सुन्दर रचना...फोटो भी आपने इतना परफेक्ट लगाया है कि क्या कहूँ...
बेहद खुबसुरत कविता
पहली पंक्ति ही इतनी ख़ूबसूरत...कि बार बार पढने को जी चाहे..."दर्द को हाशिये में डालो,मुस्कानों के सिलसिले से एक इबारत नयी लिखो"....बहुत खूब.
पूरी कविता ही सुन्दर है...और जो तस्वीरे लगाई है...उन बच्चों पर से तो नज़रें हटने से इनकार कर रही हैं...एक कम्प्लीट पैकेज...:)
yeh hui na baat
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