चिट्ठाजगत www.hamarivani.com

मंगलवार, 25 मई 2010

हाशिये में दर्द !


दर्द को हाशिये में डालो,
मुस्कानों के 
सिलसिले से 
एक इबारत नयी लिखो,
उनके बीच बस
बिंदियाँ दर्दों की हों.
गर मुस्कानें  कम लगें
खोज लो  बचपन में
निर्दोष, खामोश 
जिंदगियों में  और
उनको बाँट लो
जग के सारे गम
उनके सामने 
बहुत छोटे पड़ जायेंगे.
मुस्कानों की चमक  में
गम कहीं दब जायेंगे
खिले चेहरों पर
गर
कहीं संजीदगी आती भी है
मुस्कराओ और मुस्करा कर
सारे ग़मों को बाँट लो. 
आंसुओं  से  भरे  चेहरे 
मुसकान  से  भर  जायेंगे . 

15 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह...बहुत सुन्दर....बस बिंदियाँ दर्द की हों...क्या बात है..और बचपन में मुस्कान को ढूंढ लो....बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

दिलीप ने कहा…

bahut sundar aur antim chitr to apne aap me bahut kuch kehta hai....umda rachna

honesty project democracy ने कहा…

इस दर्द ही दर्द भरी दुनिया को दिलासा देती पोस्ट / उम्दा कविता /

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

वाह क्या कहूं अब? दर्द ही दर्द को खत्म कर देगा, सच है. जीवंत चित्र. सुन्दर रचना.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

muskaan ke silsile se nai ibarat ... bahut badhiyaa

M VERMA ने कहा…

दर्द ही जब दर्द मिटाने का हथियार बन जाये
सुन्दर
और चित्र कितना जीवंत लगाया है आपने

Udan Tashtari ने कहा…

चित्रों के साथ भावों का संगम...बहुत उम्दा!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

kash , muskan ki chamak itni gahri tajindagi rahe.........taaki usme har gam chhip jayen......aur fir se wo befikri dikhe.......jo bachpan ki yaad dila de.......:)

bahut khub Rekha di......!!

shikha varshney ने कहा…

vaah vaah vaah kitni achchi khubsurat baat kahi hai ...aameen.

राजकुमार सोनी ने कहा…

अच्छी रचना के लिए बधाई।

Ra ने कहा…

दर्द को हाशिये में डालो,
मुस्कानों के
सिलसिले से
एक इबारत नयी लिखो,
उनके बीच बस
बिंदियाँ दर्दों की हों.

खूबसूरत अभिव्यक्ति,सुन्दर रचना.चित्र-क्या बात है.

रंजना ने कहा…

क्या बात कही आपने...उफ्फ्फ....

दिल को छू लेने वाली बहुत ही सुन्दर रचना...फोटो भी आपने इतना परफेक्ट लगाया है कि क्या कहूँ...

uday ने कहा…

बेहद खुबसुरत कविता

rashmi ravija ने कहा…

पहली पंक्ति ही इतनी ख़ूबसूरत...कि बार बार पढने को जी चाहे..."दर्द को हाशिये में डालो,मुस्कानों के सिलसिले से एक इबारत नयी लिखो"....बहुत खूब.
पूरी कविता ही सुन्दर है...और जो तस्वीरे लगाई है...उन बच्चों पर से तो नज़रें हटने से इनकार कर रही हैं...एक कम्प्लीट पैकेज...:)

Anita kumar ने कहा…

yeh hui na baat