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शनिवार, 29 मई 2010

ये हादसों की इमारत !

ये जिन्दगी
हादसों की इमारत है,
जिसकी एक एक ईंट के  तले दबे
इस जिन्दगी के
कुछ न भूलने वाले 
हादसे ही तो हैं.
इसको आकार देने में
कभी मन से
कभी बेमन से
दायित्वों को ओढ़े 
ख़ामोशी से
यंत्रवत सक्रिय
ये हाथ और पैर चलते रहे .
मष्तिष्क और ह्रदय 
मेरी धरोहर थे ,
जो अपनी वेदनाओं से
कोरे कागजों को रंगते रहे.
ये ही मेरी शक्ति है,
ज्वालामुखी -
जो धधक रही है,
विस्फोट न हो
सर्वनाश न हो
इसीलिए तो
ये छंद रच रहे  हैं.
तमाम आक्रोश, विवशताओं की देन 
आंसुओं का जहर 
कहीं मुझे ही न मार दे
बस इसी लिए 
ये जो सृजन  है
वह आक्रोश औ' विवशता को
नए पंख दे देता है
और मन 
हल्का  होकर
फिर उड़ान भरने के लगता है. 


12 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक....शब्द सृजन ही वेदनाओं को कम करने में सहायक होता है....और ये गरल पी कर भी इंसान जूझता रहता है....अच्छी अभिव्यक्ति

nilesh mathur ने कहा…

आपका सृजन सार्थक है, बहुत ही सुन्दर रचना!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सृजन
आक्रोश औ' विवशता को
नए पंख दे देता है... bilkul sahi

nadeem ने कहा…

आंसुओं का जहर
कहीं मुझे ही न मार दे

सुंदर रचना

rashmi ravija ने कहा…

तमाम आक्रोश, विवशताओं की देन
आंसुओं का जहर
कहीं मुझे ही न मार दे
बस इसी लिए
ये जो सृजन है
शत प्रतिशत सहमत....
सटीक अभिव्यक्ति

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी लिखी रचना मंगलवार 16 मई 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

Meena sharma ने कहा…

कभी कभी किसी दूसरे के शब्द बिल्कुल अपने ही हृदय के उद्गारों जैसे प्रतीत होते हैं। यह रचना इस बात का प्रमाण है।

उषा किरण ने कहा…

ये जिन्दगी
हादसों की इमारत है…बहुत खूब👌

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा विचारों के बबंडर को सृजन में ढाल मन हल्का करना ...
तमाम आक्रोश, विवशताओं की देन
आंसुओं का जहर
कहीं मुझे ही न मार दे
बस इसी लिए
ये जो सृजन है
बहुत ही सटीक... सार्थक
लाजवाब सृजन।

Sweta sinha ने कहा…

सृजन ही सकारात्मकता है जीवन के तमाम विरोधाभासी परिस्थितियों के बावजूद एक आशा है।
गहन अभिव्यक्ति।
सादर।

Amrita Tanmay ने कहा…

उद्वेलित करती हुई अभिव्यक्ति।

रेणु ने कहा…

जब वेदना शब्दों में ढल जाती है तो सृजन को नई उड़ान मिल जाती है🙏