खामोश निगाहें,
खामोश जुबां,
धुंधली रोशनी या बेजुबां
नहीं होती हैं।
सब्र कि हद तक
तो पीती हैं -
तिरस्कार, जलालत और बेरुखी का जहर,
न जाने कौन से लम्हे में
इस सब्र के बाँध में
दरार आ जाये
फिर वह ज्वालामुखी
अगर फट ही गयी तो,
कोई रक्षा कवच
तुम्हें बचा नहीं पायेगा।
उसकी राख और धूल भी
इतनी घातक होगी कि
सांस लेना तो दूर
न देखने देगी औ'
न जीने देगी।
और तुम जुबान से
आग उगलने वालो
उस खामोश ज्वालामुखी में
खाक हो जाओगे,
क्योंकि ये सच है
किसी मासूम की आह से
सोने की लंका भी
खाक हो जाती है।
तब कोई बाहुबली रावण
उसको बचा नहीं पता।
इस लिए सावधान
किसी के अंतर की ज्वालामुखी को
फटने के लिए इंतजाम न करो।
उसके सब्र को
टूटने का इन्तजार न करो।
खामोश जुबां,
धुंधली रोशनी या बेजुबां
नहीं होती हैं।
सब्र कि हद तक
तो पीती हैं -
तिरस्कार, जलालत और बेरुखी का जहर,
न जाने कौन से लम्हे में
इस सब्र के बाँध में
दरार आ जाये
फिर वह ज्वालामुखी
अगर फट ही गयी तो,
कोई रक्षा कवच
तुम्हें बचा नहीं पायेगा।
उसकी राख और धूल भी
इतनी घातक होगी कि
सांस लेना तो दूर
न देखने देगी औ'
न जीने देगी।
और तुम जुबान से
आग उगलने वालो
उस खामोश ज्वालामुखी में
खाक हो जाओगे,
क्योंकि ये सच है
किसी मासूम की आह से
सोने की लंका भी
खाक हो जाती है।
तब कोई बाहुबली रावण
उसको बचा नहीं पता।
इस लिए सावधान
किसी के अंतर की ज्वालामुखी को
फटने के लिए इंतजाम न करो।
उसके सब्र को
टूटने का इन्तजार न करो।
8 टिप्पणियां:
किसी के अंतर की ज्वालामुखी को
फटने के लिए इंतजाम न करो।
उसके सब्र को
टूटने का इन्तजार न करो।
बहुत खूब ..मन की तपिश को शब्द देती रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत बढ़िया शब्दचित्र रचे हैं आपने!
किसी के अंतर की ज्वालामुखी को
फटने के लिए इंतजाम न करो।
उसके सब्र को
टूटने का इन्तजार न करो।
अथाह दर्द का सागर हिलोरें मार रहा है……………मर्मभेदी रचना।
सच है घड़े में आकरी बूँद का इन्तेज़ार नहीं करना चाहिए ... सब्र का बाँध टूट जाता है तो प्रलय आ जाती है ...
सशक्त रचना।
खामोश ज्वालामुखी फटते हैं तो राख और लावा दूर तक उछलता है और वह इलाका वीरान हो जाता है ...
मन में दबे गुस्से के एकदम से फट पड़ने का ज्वालामुखी में सुन्दर प्रयोग !
pranam !
behad sunder ahbhivyakti !achchi rachna !
saadar
सुन्दर रचना। शुभकामनायें।
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