आज निकले
मन की तराजू लेकर
तौलने वजन रिश्तों का ।
हमने तो जीवन भर
दिया सबको
अंतर मन से वांछित ,
पर शाम तक
लौटने के समय तक
कोई मुझे वक्त ही न दे पाया
तौलती मैं क्या ?
सजे हुए घर
मेज पर लगे नाश्ते की प्लेटें
या हाथ बांधे खडी
उनके कामगरों की फौज ।
खाली तराजू ,
भरा मन औ'
रिक्तता का अहसास
लेकर वापस आ गयी।
मन की तराजू लेकर
तौलने वजन रिश्तों का ।
हमने तो जीवन भर
दिया सबको
अंतर मन से वांछित ,
पर शाम तक
लौटने के समय तक
कोई मुझे वक्त ही न दे पाया
तौलती मैं क्या ?
सजे हुए घर
मेज पर लगे नाश्ते की प्लेटें
या हाथ बांधे खडी
उनके कामगरों की फौज ।
खाली तराजू ,
भरा मन औ'
रिक्तता का अहसास
लेकर वापस आ गयी।
3 टिप्पणियां:
as usual ...........shandaar !!
सुन्दर प्रस्तुति!
सुंदर लिखा
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