हम इंसान है,
हम सृष्टि के
बुद्धिमान प्राणी हैं,
बुद्धि, विवेक , दया , ममता
सिर्फ इंसान में
प्रकृति ने दी थी .
फिर क्या हुआ ?
इंसान में से
एक एक करके
किसी में कुछ
किसी में कुछ
ये गुण साथ छोड़ने लगे ,
फिर आज वह
पशु से भी नीचे
गिर गया
वह अपने कर्मों से
अपनी सोच से
अपनी दृष्टि में
हैवान से भी बड़ा हो गया .
अब कौन सा परिवर्तन
कौन सा कदम
उन्हें वापस इंसान
बनाने के लिए
उठाना होगा .
ये तो तय है अब
ये काम अब इश्वर नहीं
बल्कि हमको करना होगा .
वो जो हम भूल गए
अपने में खो कर
कुछ कहीं भूल गए
अब बचपन जब
माँ के आँचल में नहीं ,
नानी और दादी की गोद में नहीं
रिमोट, कंप्यूटर , वीडिओ गेम में आँख खोलेंगे
तो फिर संस्कार भी तो
उनसे ही मिलेंगे न।
अब हम जागें
फिर से
अपनी दादी नानी की तरह
नयी पौध के अबोध मन को
कच्ची मिटटी की तरह
एक सांचे में ढालना होगा
तभी तो फिर से
हम संस्कारों से उनको
सुसंस्कारित कर
मानवता के रिश्तों के
नए अर्थ समझा पायेंगे
उन्हें फिर नारी में
माँ, बहन और बेटी के
रूपों को दिखा पायेंगे।
आदर , स्नेह, निष्ठां के
सही अर्थों को सिखा पायेंगे .
हम सृष्टि के
बुद्धिमान प्राणी हैं,
बुद्धि, विवेक , दया , ममता
सिर्फ इंसान में
प्रकृति ने दी थी .
फिर क्या हुआ ?
इंसान में से
एक एक करके
किसी में कुछ
किसी में कुछ
ये गुण साथ छोड़ने लगे ,
फिर आज वह
पशु से भी नीचे
गिर गया
वह अपने कर्मों से
अपनी सोच से
अपनी दृष्टि में
हैवान से भी बड़ा हो गया .
अब कौन सा परिवर्तन
कौन सा कदम
उन्हें वापस इंसान
बनाने के लिए
उठाना होगा .
ये तो तय है अब
ये काम अब इश्वर नहीं
बल्कि हमको करना होगा .
वो जो हम भूल गए
अपने में खो कर
कुछ कहीं भूल गए
अब बचपन जब
माँ के आँचल में नहीं ,
नानी और दादी की गोद में नहीं
रिमोट, कंप्यूटर , वीडिओ गेम में आँख खोलेंगे
तो फिर संस्कार भी तो
उनसे ही मिलेंगे न।
अब हम जागें
फिर से
अपनी दादी नानी की तरह
नयी पौध के अबोध मन को
कच्ची मिटटी की तरह
एक सांचे में ढालना होगा
तभी तो फिर से
हम संस्कारों से उनको
सुसंस्कारित कर
मानवता के रिश्तों के
नए अर्थ समझा पायेंगे
उन्हें फिर नारी में
माँ, बहन और बेटी के
रूपों को दिखा पायेंगे।
आदर , स्नेह, निष्ठां के
सही अर्थों को सिखा पायेंगे .
6 टिप्पणियां:
सही कह रही हैं आप मगर यह इतना आसान नहीं सोचो तो लगता है इस सब से अब बहुत आगे चुके है नए अभिभावक इतनी दूर के शायद वापस लौटकर आने का रास्ता उन्हें स्वयं ही दिखाई नहीं देता...सार्थक संदेश लिए विचारणीय प्रस्तुति....
खुबसूरत अभिवयक्ति...... .
सार्थक सोच लिए प्रेरित करती रचना ! बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति !
सही संस्कारों के साथ बाहरी ढाँचा(सामाजिक परिवेश )भी न्यायपूर्ण और उचित विकास की सुविधाएँ देनेवाला हो तभी पूरा सुधार संभव है .
सही अर्थों में युग बदलनेवाली सोच .
Sarthak lekhan
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