हम आसमान की
ऊँचाइयाँ छू रहे हैं,
देखा नहीं जाता
फिर बंदिशों के ताले में
कैद करने की
साजिशें रच रहे हो .
ये बंदिशें सिर्फ
हम पर ही क्यों लगें?
कभी अपने पर
अंकुश लगाने की सोची ?
नहीं
आखिर क्यों नहीं?
इतिहास की तरफ
अंगुली उठा रहे हो
चाहते हो
फिर से कैद करके
हमें महफूज़ तुम रखोगे
महफूज़ हो तुम कहकर
सेहरा अपने सिर
बाँधना चाहते हो।
इन बेड़ियों में रहकर
सितम जो हमने सहे हैं
उनको अभी भूले नहीं है .
महफूज़ के नाम पर
गुलामी हमने की है
दो रोटियों और धोतियों की खातिर
पूरी जिन्दगी हमने दी है।
चिराग भी दिया है
खानदान को तुम्हारे
तुमने क्या दिया था ?
आजाद हो चुके हैं
आजाद ही रहेंगे .
बगावत जो हमने की है
वो जारी अभी रहेगी।
आजाद ही रहेंगे
महफूज़ भी रहेंगे।
तुम न रख सके
तो हम दुर्गा बन रहेंगे
सीता बन जी चुके बहुत
अब दुर्गा बन जियेंगे
अब काली बन जियेंगे।
ऊँचाइयाँ छू रहे हैं,
देखा नहीं जाता
फिर बंदिशों के ताले में
कैद करने की
साजिशें रच रहे हो .
ये बंदिशें सिर्फ
हम पर ही क्यों लगें?
कभी अपने पर
अंकुश लगाने की सोची ?
नहीं
आखिर क्यों नहीं?
इतिहास की तरफ
अंगुली उठा रहे हो
चाहते हो
फिर से कैद करके
हमें महफूज़ तुम रखोगे
महफूज़ हो तुम कहकर
सेहरा अपने सिर
बाँधना चाहते हो।
इन बेड़ियों में रहकर
सितम जो हमने सहे हैं
उनको अभी भूले नहीं है .
महफूज़ के नाम पर
गुलामी हमने की है
दो रोटियों और धोतियों की खातिर
पूरी जिन्दगी हमने दी है।
चिराग भी दिया है
खानदान को तुम्हारे
तुमने क्या दिया था ?
आजाद हो चुके हैं
आजाद ही रहेंगे .
बगावत जो हमने की है
वो जारी अभी रहेगी।
आजाद ही रहेंगे
महफूज़ भी रहेंगे।
तुम न रख सके
तो हम दुर्गा बन रहेंगे
सीता बन जी चुके बहुत
अब दुर्गा बन जियेंगे
अब काली बन जियेंगे।
12 टिप्पणियां:
बगावत जो हमने की है
वो जारी अभी रहेगी।
आजाद ही रहेंगे
महफूज़ भी रहेंगे।
तुम न रख सके
तो हम दुर्गा बन रहेंगे
सीता बन जी चुके बहुत
अब दुर्गा बन जियेंगे
अब काली बन जियेंगे।
एक ललकारती रचना हुंकार भर रही है……………बहुत खूब
behtreen sarthak rachna....
सुन्दर प्रस्तुति |
आभार आदरेया ||
बहुत सुंदर क्या बात हैं .....
तो हम दुर्गा बन रहेंगे
सीता बन जी चुके बहुत
अब दुर्गा बन जियेंगे
अब काली बन जियेंगे। .......वाह बहुत खूब
अब औरत के इसी काली रूप के लिए जीना होगा
.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ...... आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
प्राणदायी संकल्प से झकझोरती ओजपूर्ण रचना रेखा जी ! निश्चित रूप से अब दुर्गा और काली बन कर ही स्वयं को सिद्ध करना होगा ! बहुत खूबसूरत एवं प्रेरक अभिव्यक्ति !
बहुत सुंदर
न्याय पाने को संघर्ष करना ही होगा!
नारी की आज़ादी को लोग बर्दाश्त नहीं कर पा रहे ...
सच है ... अच्छा लगता है जब नारी खुद पे गर्व करे ओर ऊपर उठने की ठाने ...
उमदा प्रस्तुति ...
जब अपनी अस्मिता जाग उठे तो किसी काका साहस नहीं होगा कि अपना खिलौना बना ले !
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