महान कौन है?
वो नहीं
जो ऊँचाइयों तक जाकर
फिर पलट कर
नीचे नहीं देखता .
या फिर
वो जो ऊपर
जाकर भी
अपनी जमीन से
नाता नहीं तोड़ता है।
अपने जीवन के
उन पलों को
जो अहसास कुछ करते हैं ,
फिर कुछ पाकर
अगर भूल जाते हैं
तो फिर
यथार्थ को झुठलाने जैसा हुआ।
जहाँ से चले थे
वो मुकाम
कभी भूलते नहीं ,
अपनी जड़ों से
अलग होकर
शाखें कभी पनप नहीं सकती .
फिर इन्सान कैसे
अपनी जमीन से कट कर
आसमान में जी सकता है।
जीना भी चाहे तो
फिर आसमान उसको मिलता नहीं
औ'
जमीं उसकी रहती नहीं।
ये त्रिशंकु सा जीवन
आखिर में उसकी नियति
बन जाती है।
वो नहीं
जो ऊँचाइयों तक जाकर
फिर पलट कर
नीचे नहीं देखता .
या फिर
वो जो ऊपर
जाकर भी
अपनी जमीन से
नाता नहीं तोड़ता है।
अपने जीवन के
उन पलों को
जो अहसास कुछ करते हैं ,
फिर कुछ पाकर
अगर भूल जाते हैं
तो फिर
यथार्थ को झुठलाने जैसा हुआ।
जहाँ से चले थे
वो मुकाम
कभी भूलते नहीं ,
अपनी जड़ों से
अलग होकर
शाखें कभी पनप नहीं सकती .
फिर इन्सान कैसे
अपनी जमीन से कट कर
आसमान में जी सकता है।
जीना भी चाहे तो
फिर आसमान उसको मिलता नहीं
औ'
जमीं उसकी रहती नहीं।
ये त्रिशंकु सा जीवन
आखिर में उसकी नियति
बन जाती है।
8 टिप्पणियां:
जड़ से नाता टूट जाए तो कैसी उंचाई !
यही विडम्बना है इस समाज में कि जो आगे बढ़ गया वह अपने जड़ों को पहचानने से इनकार कर देता है और ऊँचाई का मद उसे कहीं का नहीं छोड़ता है.
गहन भाव लिये सशक्त अभिव्यक्ति ।
रचना के माध्यम से बहुत गहन बात कही है रेखा जी लाजबाब रचना
अक्सर भूल जाते हैं लोग अपनी जड़ों को.....
बेहतरीन...उम्दा
अपनी जड़ों से
अलग होकर
शाखें कभी पनप नहीं सकती .
फिर इन्सान कैसे
अपनी जमीन से कट कर
आसमान में जी सकता है।
जीना भी चाहे तो
फिर आसमान उसको मिलता नहीं
औ'
जमीं उसकी रहती नहीं।
ये त्रिशंकु सा जीवन
आखिर में उसकी नियति
बन जाती है।
bilkul sahi aaklan kiya hai..........apni jamin se jude rahne wale hi aasmanon par nayi ibarat likhte hain
जिसने जड़ें छोड़ीं वो एक दिन ऊंचाई से ऐसे गिरेगा कि उठ भी नहीं पाएगा ... सुंदर अभिव्यक्ति
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