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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

त्रिशंकु सा जीवन !

महान कौन है?
वो नहीं 
जो ऊँचाइयों तक जाकर 
फिर पलट कर 
नीचे नहीं देखता .
या फिर 
वो जो ऊपर 
जाकर भी 
अपनी जमीन से 
नाता नहीं तोड़ता है। 
अपने जीवन के 
उन पलों को 
जो अहसास कुछ करते हैं ,
फिर कुछ पाकर 
अगर भूल जाते हैं 
तो फिर 
यथार्थ को झुठलाने जैसा हुआ।
जहाँ से चले थे
वो मुकाम 
कभी भूलते नहीं ,
अपनी जड़ों से 
अलग होकर 
शाखें कभी पनप नहीं सकती .
फिर इन्सान कैसे 
अपनी जमीन से कट कर 
आसमान में जी सकता है। 
जीना भी चाहे तो 
फिर आसमान  उसको मिलता नहीं 
औ'
जमीं उसकी रहती नहीं। 
ये त्रिशंकु सा जीवन 
आखिर में उसकी नियति 
बन जाती है।

8 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जड़ से नाता टूट जाए तो कैसी उंचाई !

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

यही विडम्बना है इस समाज में कि जो आगे बढ़ गया वह अपने जड़ों को पहचानने से इनकार कर देता है और ऊँचाई का मद उसे कहीं का नहीं छोड़ता है.

सदा ने कहा…

गहन भाव लिये सशक्‍त अभिव्‍यक्ति ।

Rajesh Kumari ने कहा…

रचना के माध्यम से बहुत गहन बात कही है रेखा जी लाजबाब रचना

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अक्सर भूल जाते हैं लोग अपनी जड़ों को.....

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन...उम्दा

vandana gupta ने कहा…

अपनी जड़ों से
अलग होकर
शाखें कभी पनप नहीं सकती .
फिर इन्सान कैसे
अपनी जमीन से कट कर
आसमान में जी सकता है।
जीना भी चाहे तो
फिर आसमान उसको मिलता नहीं
औ'
जमीं उसकी रहती नहीं।
ये त्रिशंकु सा जीवन
आखिर में उसकी नियति
बन जाती है।

bilkul sahi aaklan kiya hai..........apni jamin se jude rahne wale hi aasmanon par nayi ibarat likhte hain

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जिसने जड़ें छोड़ीं वो एक दिन ऊंचाई से ऐसे गिरेगा कि उठ भी नहीं पाएगा ... सुंदर अभिव्यक्ति