दीवार
तो एक ही होती है,
चाहे वह
ईंट और गारे की हो
या फिर
अनदेखी दिल के बीच।
ईंट गारे की दीवार फिर भी
लांघ कर जा सकते हें,
जब चाहे तोड़ कर फिर
एक हो सकते हें।
लेकिन जहाँ द्वार से द्वार
मिल रहे हों,
फासले सिर्फ और सिर्फ
दिलों के बीच दीवार बन गए हों,
वहाँ
उसको फिर तोड़ नहीं सकते,
दो दिल फिर मिल नहीं सकते।
इसी लिए
बोलो खूब बोलो
लेकिन
तौल कर बोलो
कि दिल के बीच दीवारें तो न बनें।
वे चाहे घर में हों,
देश में हों,
जाति में हों,
वर्ग में हों ,
या फिर आदमी और आदमी के बीच में हों।
प्रिय बोलो,
मधुर बोलो,
इसमें कुछ नहीं लगता,
बस कुछ मिलता ही है,
प्यार से बोलो,
प्यार मिलेगा।
दो बोलों से पूरा संसार मिलेगा।
रविवार, 29 जनवरी 2012
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10 टिप्पणियां:
bahut pate ki bat kahi hai.anusaraniye rachna.
सार्थक पोस्ट.....
सार्थक सन्देश देती रचना ...
बहुत सार्थक सन्देश देती सुन्दर प्रस्तुति...
सुन्दर सीख देती हुई खूबसूरत पंक्तियाँ ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ऐसी बानी बोलिए ...मन का आप खोये...
बहुत सुन्दर लिखा है..
kalamdaan.blogspot.com
वाह ...सार्थक बात कही है आपने ।
बहुत अच्छी बात कही है आपने...प्यार बांटते चलो...प्यार...
नीरज
बस एक यही बात समझ आजाए इंसान को तो क्या बात है दिल के बीच फिर कभी दूरियाँ बढ़े ही नहीं...सार्थक संदेश देती रचना ...
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