मंत्रीजी से मिलने
चार बंगले वाले पहुंचे।
लगे सवाल करने
मेन रोड कब बनेगी?
गाड़ी फँस जाती है गड्ढों में
धूल के गुबारों से
निकलना मुश्किल है,
गलियां जो जुड़ रही है उनसे
सब पक्की हो चुकी है।
ये क्या तमाशा है?
मंत्रीजी ने
पान मसाले को निगलते हुए
अंगुली उठाकर
उनसे कहा -
आप बड़े बंगले वाले
मेन रोड पर ४ -६ बंगले हैं,
पूरी सड़क पड़ी है
आधे में उजड़ा पार्क
और
सामुदायिक केंद्र बना है।
वोट क्या खाक मिलेंगे?
गलियों में लोग
एक घर में
१०-१० रहते हैं,
उन्हें सुविधा देंगे
नाम लेंगे,
बदले में मेरी सीट पक्की
बंगले वाले तो वोट भी नहीं देते
गालियाँ देते हैं
सो मेन रोड नहीं
उसके किनारे लगे
पत्थर देखिये
जिनपर लिखा मेरा नाम
तुम्हें गैर जिम्मेदार ठहरा रहा है।
मंगलवार, 7 जून 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
रचना में आपने बहुत सटीक चित्रण किया है वर्तमान व्यवस्था का!
बहुत सटीक टिप्पणी...बिना वोट के लालच के नेता क्यों कोई काम करेंगे...वे वहां समाज सेवा के लिये तो नहीं बैठे..बहुत सार्थक प्रस्तुति..
वर्तमान व्यवस्था का बहुत सटीक चित्रण| बहुत सार्थक प्रस्तुति|
करारा प्रहार्।
एक टिप्पणी भेजें