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शुक्रवार, 5 मार्च 2010

तिनका - तिनका आशियाँ!

वो  
आकाश में 
गुजरते हर जहाज को 
गौर से देखती 
शायद इसी में 
उसका बेटा होगा?
यही सुना था,
उसका बेटा 
हवाई जहाज की फौज में गया है.
अब की आया 
तो बेड़ियाँ डाल दूँगी.
घर-आँगन खाली-खाली सा 
अब देखा नहीं जाता.
शहनाई  औ'ढोलक की 
थाप की अनुगूँज के
सुखद अहसास से
सिहर जाती .
इससे बेखबर  कि
हवाई जहाज में बैठ 
बेटा अपनी ऊँची उड़ान में
कल ही 
बहुत दूर चला गया.
दरवाजे पर फौज की
गाड़ियाँ आने लगी,
भीड़ लग गयी
जब ताबूत उतारा गया
तो नहीं जानती थी 
इस बक्शे में क्या है?
कुछ भेजा होगा
मेरे लाल ने
छू छू कर देखने लगी
जब खोल कर
 फूलों से लदा
शव बाहर निकला

फटी आँखों से देखती रही
खामोश हो गयी
उठ-उठ मेरे लाल
झकझोरती 
वह बेसहारा
रो नहीं सिर्फ  चीख रही थी.
'मेरे लाल को क्या हुआ?
सब फौजियों से पूछ रही थी.
और वे सब खामोश
सर झुकाए खड़े
गाँव के मुखिया ने
गाँव के गौरव को
श्रद्धांजलि दी.
अमर रहे - अमर रहे
के नारों की गूँज 
पिघले शीशे की तरह
उसके कानों को बेधते रहे 
उस शहीद की शव यात्रा ने
कहीं देश को बचाया
पर उस विधवा का 
बिखर गया
तिनके -तिनके आशियाँ.

2 टिप्‍पणियां:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

इस दर्द को सिर्फ वही महसूस कर सकता है, जिसने झेला है.
रचना मार्मिक है.

अनिल कान्त ने कहा…

कुछ दर्द ऐसे होते हैं जिनका पता उन्हें ही होता है जिन्होने उसे झेला हो....
कविता बहुत अच्छी है.