वक्त गुजरता जा रहा है तूफान की तरह तेजी से ,
हम पोटली थामे यादों की आज भी लिए बैठे हैं ।
दौड़ नहीं पाये संग संग उसके तो पीछे रह गये ,
थाम कर बीते दिन पुराने कलैण्डर से लिए बैठे हैं ।
पाँव थक गये थे दौड़ना सिखाते सिखाते उनको ,
आयेंगे वो पलट कर साथ ले जाने आस लिए बैठे हैं।
हमारी तो ये धरोहर है जीवन की सुनहरे पलों की ,
आये तो जलाकर चल दिये हम राख लिए बैठे हैं ।
-- रेखा
8 टिप्पणियां:
ओह, मार्मिक प्रस्तुति ।
सुनहरे पल भी जल जाते हैं ।
आपकी लिखी रचना सोमवार. 13 सितंबर 2021 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 13.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वक्त गुजरता जा रहा है तूफान की तरह तेजी से ,
हम पोटली थामे यादों की आज भी लिए बैठे हैं ।
अति सुन्दर ।
हमारी तो ये धरोहर है जीवन की सुनहरे पलों की ,
आये तो जलाकर चल दिये हम राख लिए बैठे हैं ।
अति सुंदर सृजन।
सादर।
सच! आस लिए ही सब बैठे हैं .. उम्दा नज़्म ।
अति प्रशंसनीय प्रस्तुति। बहुत खूब।
दौड़ना इतना सिखाया कि दौड़े ही नहीं बल्कि भाग गये सिखखने वाले उनके लौटने की आस लिए बैठे हैं
बहुत ही उम्दा।
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