खुले
आसमान में
विहान से उड़ते रहो
पतंग
मत बनना कभी।
वो पतंग
जो
डोर दूसरों को देकर
आसमान में
नचाई जाती है ,
न मर्जी से उड़ती है
और न मर्जी से उतरती है।
हाँ वह
काट जरूर दी जाती है ,
और बेघर सी
कहीं से कटकर
कहीं और जाकर
जमीं मिलती है उसे।
अपने पैरों को
उन्मुक्त आकाश में
फैलाये हुए
अपने अस्तित्व को
जीवित रखते हुए
सुदूर आकाश में
बस अपनी मर्जी से
उड़ते रहो
उड़ते रहो।
आसमान में
विहान से उड़ते रहो
पतंग
मत बनना कभी।
वो पतंग
जो
डोर दूसरों को देकर
आसमान में
नचाई जाती है ,
न मर्जी से उड़ती है
और न मर्जी से उतरती है।
हाँ वह
काट जरूर दी जाती है ,
और बेघर सी
कहीं से कटकर
कहीं और जाकर
जमीं मिलती है उसे।
अपने पैरों को
उन्मुक्त आकाश में
फैलाये हुए
अपने अस्तित्व को
जीवित रखते हुए
सुदूर आकाश में
बस अपनी मर्जी से
उड़ते रहो
उड़ते रहो।
5 टिप्पणियां:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी की 120वीं जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
सुन्दर भावपूर्ण!!
पतंग को उड़ना है तो किसी की डोरी में बंधना ही पड़ेगा.
बढ़िया
बहुत ही भावपूर्ण रचना, शुभकामनाएं.
#हिंदी_ब्लागिँग में नया जोश भरने के लिये आपका सादर आभार
रामराम
०९३
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