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बुधवार, 4 जून 2014

आंसुओं से नाता !

नारी तू 
लेकर नाता 
अपने आंसुओं से 
धरती पर 
पैदा ही क्यों हुई ?
जब छोटी सी बच्ची 
भर भर आँखें 
क्यों रोती है ?
जोड़ कर 
अपनी गुड़िया से 
रिश्ता स्नेह का 
विदा किया तो 
फूट फूट कर रोई। 
उम्र बढ़ी तो 
हर पल ये अहसास 
उसको जाना है ,
वह परायी है ,
ये उसका घर नहीं ,
बार बार उसको रुला जाता है। 
कभी ख़्याल आता 
जन्म से लेकर 
इस दिन तक 
जिनके साये में जिया 
प्यार जिनसे लिया 
उन्हें छोड़ कर जाऊं कैसे ?
बस आँखे भीग भीग जाती हैं। 
डोली में रखते ही कदम 
वो देहरी परायी हो गयी 
वो माटी , घर , माँ बाप सभी
छोड़ कर चली परदेश 
सारे रिश्ते पराये हो गए 
जन्म के रिश्ते ,
छूटे पीछे , 
टूटे घरोंदे ,
 बिखरी गुड़ियाँ 
जब जब सोचा 
भर भर आयीं उसकी आँखें। 
दूसरे घर में भी 
उसको कहाँ मिला अहसास 
वो उसका अपना ही घर है ,
उसे अपना बनाने में
जीवन भर खुद को 
कुर्बान कर दिया 
उस क़ुरबानी के बाद भी 
हाथ तो सिर्फ 
आँखों की नमी ही आई। 
बेटी पाकर गोद में 
उसमें खुद को पा लिया ,
वही उसको पाला  पोसा
फिर अपनी तरह। 
उसको भेजा पराये घर 
फिर फूट फूट कर रोई।
शायद यही नियति है तेरी

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-06-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1634 में दिया गया है
आभार

Pratibha Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

रश्मि शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्‍तुति‍

Pallavi saxena ने कहा…

सार्थक भाव लिए सुंदर भवाभिव्यक्ति...