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शनिवार, 3 मई 2014

हाइकू !


कुलदीपक
आज भी जरूरी हैं
कन्या मार दो।
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चाहे न डालें
गले में गंगाजल
चाहिए वही।
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कहाँ तक न
खोजा  कुलदीपक
अंत आ गया
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आवाज ही दी
बेटी तो आँखें भर
निहार रही।
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पत्थर पूजे
माँगा तो बेटा ही था
बेटी हुई तो ?
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आंसूं निकले
शक्ल बेटी की देख
श्राद्ध न होगा।
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नाम बेटी का
लेना भी गुनाह था
आज रो पड़े।
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4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (05-05-2014) को "मुजरिम हैं पेट के" (चर्चा मंच-1603) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बेटी सदैव
होती मन के पास
फिर भी न जाने क्यों
हमेशा बेटे की आस ।

सच को कहते सार गर्भित हाइकु

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

sundar haikuz

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मन को छूते हैं सभी हाइकू ...
सामाजिक ताने बाने को उतरा है ...