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सोमवार, 24 मार्च 2014

वे यकीन नहीं करते !

                                  कलम का एक लम्बा विराम और फिर उठ कर चलने का प्रवाह सब अपना ही मन है।  कहीं बिंधी रही जिंदगी किसी  काम में - फिर चल पड़ा सफर और साथ हम आपके हैं .

आज उतरते हुए गाड़ी  से जो उनने देखा ,
कभी मीलों पैदल चलने से पड़े छालों की बात
सुनकर मेरी ही बातों पर वे यकीन नहीं करते।


आज के इस रोशनी से जगमगाते हुए घर ,
कभी एक लालटेन में पढ़े हैं चार बच्चे घर में
 बार बार कहने पर भी वे यकीन नहीं करते।

एक ही वक़्त जिंदगी का मेरी ऐसा भी था ,
ऑफिस में की बोर्ड पर चलने वाली ये अंगुलियां ,
आँगन गोबर से लीपती थी यकीन नहीं करते।

जिंदगी में अपनी देखे हैं कैसे कैसे मंजर ,
इम्तिहान लेने को खड़े थे कुछ बहुत अपने ,
हारे नहीं हम जीत कर निकले वे यकीन नहीं करते। 

5 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

क्या बात है। लाजवाब प्रस्तुति।

Shalini kaushik ने कहा…

आज के इस रोशनी से जगमगाते हुए घर ,
कभी एक लालटेन में पढ़े हैं चार बच्चे घर में
बार बार कहने पर भी वे यकीन नहीं करते।
very nice.

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

समय बदल जाता है,जिसने झेला है वही जानता है ,विगत अँधेरे पक्ष को कोई देखता नहीं, देखना चाहता भी नहीं.जिसका सच है वह जानता है दूसरा माने या माने क्या फ़र्क पड़ता है !

आशीष अवस्थी ने कहा…

बढ़िया रचना , आदरणीय धन्यवाद व स्वागत हैं मेरे लिंक पे -
नया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ प्राणायाम ही कल्पवृक्ष ~ ) - { Inspiring stories part -3 }

संजय भास्‍कर ने कहा…

लाजवाब प्रस्तुति।