कलम का एक लम्बा विराम और फिर उठ कर चलने का प्रवाह सब अपना ही मन है। कहीं बिंधी रही जिंदगी किसी काम में - फिर चल पड़ा सफर और साथ हम आपके हैं .
आज उतरते हुए गाड़ी से जो उनने देखा ,
कभी मीलों पैदल चलने से पड़े छालों की बात
सुनकर मेरी ही बातों पर वे यकीन नहीं करते।
आज के इस रोशनी से जगमगाते हुए घर ,
कभी एक लालटेन में पढ़े हैं चार बच्चे घर में
बार बार कहने पर भी वे यकीन नहीं करते।
एक ही वक़्त जिंदगी का मेरी ऐसा भी था ,
ऑफिस में की बोर्ड पर चलने वाली ये अंगुलियां ,
आँगन गोबर से लीपती थी यकीन नहीं करते।
जिंदगी में अपनी देखे हैं कैसे कैसे मंजर ,
इम्तिहान लेने को खड़े थे कुछ बहुत अपने ,
हारे नहीं हम जीत कर निकले वे यकीन नहीं करते।
सुनकर मेरी ही बातों पर वे यकीन नहीं करते।
आज के इस रोशनी से जगमगाते हुए घर ,
कभी एक लालटेन में पढ़े हैं चार बच्चे घर में
बार बार कहने पर भी वे यकीन नहीं करते।
एक ही वक़्त जिंदगी का मेरी ऐसा भी था ,
आँगन गोबर से लीपती थी यकीन नहीं करते।
जिंदगी में अपनी देखे हैं कैसे कैसे मंजर ,
5 टिप्पणियां:
क्या बात है। लाजवाब प्रस्तुति।
आज के इस रोशनी से जगमगाते हुए घर ,
कभी एक लालटेन में पढ़े हैं चार बच्चे घर में
बार बार कहने पर भी वे यकीन नहीं करते।
very nice.
समय बदल जाता है,जिसने झेला है वही जानता है ,विगत अँधेरे पक्ष को कोई देखता नहीं, देखना चाहता भी नहीं.जिसका सच है वह जानता है दूसरा माने या माने क्या फ़र्क पड़ता है !
बढ़िया रचना , आदरणीय धन्यवाद व स्वागत हैं मेरे लिंक पे -
नया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ प्राणायाम ही कल्पवृक्ष ~ ) - { Inspiring stories part -3 }
लाजवाब प्रस्तुति।
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