बम के धमाके
चीखें, खून और लाशें
कुछ पल पहले
वह जिन्दगी के लिए
खरीद रहे थे ,
फल , कपडे और जीने के लिए और कुछ
और एक वो पल
जिसने उन्हें
इंसान से लाश बना दिया,
पैरों पर खड़े लोगों को
अस्पताल पहुंचा दिया .
गोली , बारूद और धमाकों के
जिम्मेदार पागल लोग कहते हैं
कि हम धर्म के लिए
लड़ रहे हैं .
कुछ दहशतगर्दों की
मौत का बदल ले रहे है।
उनसे ही एक सवाल ?
किस धर्म ने कहा है -
इंसान को मार दो
किस धर्म ने कहा -
उसके नाम पर
अंधे होकर जिन्दगी छीन लो.
क्यों अपनी कुंठाओं और वहशत को
धर्म औ' वर्ग का नाम देते हो.
खून का कोई रंग नहीं
कि मरने वालों का धर्म बता दे ,
मरने वाले सिर्फ इंसान होते हैं
रोते बिलखते परिवार
कोई अपना ही खोते है .
जब देने को कुछ नहीं ,
तुम्हारे पास उनको
क्यों छीनते हो ?
साया उनके सिर से बाप का
चिराग किसी घर का
पालनहार कितनी जिंदगियों का
क्या बिगाड़ा है तुम्हारा ?
तुम्हारा जो भी धर्म हो
एक तरफ खड़े हो जाओ
खुदा या ईश्वर की दुहाई देने वालो
देखना है कि
कितने लोग तुम्हारी जमात में आते हैं .
हैवानियत का खेल
इस जहाँ से
इंसानियत को मिटा नहीं सकती .
कोई ताकत तुम बचा नहीं सकती .
चीखें, खून और लाशें
कुछ पल पहले
वह जिन्दगी के लिए
खरीद रहे थे ,
फल , कपडे और जीने के लिए और कुछ
और एक वो पल
जिसने उन्हें
इंसान से लाश बना दिया,
पैरों पर खड़े लोगों को
अस्पताल पहुंचा दिया .
गोली , बारूद और धमाकों के
जिम्मेदार पागल लोग कहते हैं
कि हम धर्म के लिए
लड़ रहे हैं .
कुछ दहशतगर्दों की
मौत का बदल ले रहे है।
उनसे ही एक सवाल ?
किस धर्म ने कहा है -
इंसान को मार दो
किस धर्म ने कहा -
उसके नाम पर
अंधे होकर जिन्दगी छीन लो.
क्यों अपनी कुंठाओं और वहशत को
धर्म औ' वर्ग का नाम देते हो.
खून का कोई रंग नहीं
कि मरने वालों का धर्म बता दे ,
मरने वाले सिर्फ इंसान होते हैं
रोते बिलखते परिवार
कोई अपना ही खोते है .
जब देने को कुछ नहीं ,
तुम्हारे पास उनको
क्यों छीनते हो ?
साया उनके सिर से बाप का
चिराग किसी घर का
पालनहार कितनी जिंदगियों का
क्या बिगाड़ा है तुम्हारा ?
तुम्हारा जो भी धर्म हो
एक तरफ खड़े हो जाओ
खुदा या ईश्वर की दुहाई देने वालो
देखना है कि
कितने लोग तुम्हारी जमात में आते हैं .
हैवानियत का खेल
इस जहाँ से
इंसानियत को मिटा नहीं सकती .
कोई ताकत तुम बचा नहीं सकती .
8 टिप्पणियां:
क्या कहा जाये...मन दुखी है!!
रेखा जी,किससे धर्म और मानवीय संवेदना की बात कह रही हैं?जूतों के भूत बातों से नहीं मानते इस सच को जितनी जल्दी समझ लिया- जाय़ उतना ही ठीक.
पता नहीं क्यों इस तरह करते हैं ? क्या मकसद है इस तरह निर्दोषों को मारने का ?
प्रतिभा जी जिनमें इनको समझने की हैं वे तो अपनी कुर्सी के लिए चिंतित है देश और देशवासियों की चिंता किसे हैं? हम विवश है और सिर्फ या आंसू बहा सकते हैं या फिर कलम से रो सकते है.
सचमुच बहुत ही ह्रदय विदारक घटना है ! मन स्तब्ध है शब्द खो से गए हैं ! अफज़ल गुरु को फांसी देने पर जो लोग मानवीय अधिकारों के मुद्दे पर रोज़ बहस कर रहे हैं वे आज कहाँ हैं ? इस आतंकी घटना में जो लोग मारे गए उनके मानवीय अधिकारों का पैरोकार कौन है आज ? आतंकवादी बेरहमी से अपना काम कर जाते हैं और तथाकथित बुद्धिजीवी उन आतंकवादियों की हिमायत करने के लिए सीना ठोक कर खड़े रहते हैं ! लेकिन जो आम आदमी इन कुचक्रों का शिकार होते हैं उनकी हिमायत कौन करेगा ?
ye chitthre kab tak udte rahenge....
क्या करें आम लोग-
बर्दाश्त और क्या-
क्या करे खास लोग
बयानबाजी और क्या-
क्या करें आतंकी-
अगले लक्ष्य की तलाश और क्या
क्या करे लाश-
उसे क्या करना है बाकी अब--
राम नाम सत्य है-
मन द्रवित है .. वो कौन है जिसे मानव रक्त की दरकार है शायद ..यही वो लोग हैं जो इस सभ्य समाज से दूर है या दूर किये गए हैं .सत्ता के जाल में आम आदमी .. सड़कों पर टुकड़े टुकड़े पड़ा है .. इन चिथड़ों का मोल कौन समझेगा ,और कब ये खुनी खेल रुकेगा .. आओ प्रार्थना करें
एक टिप्पणी भेजें