शब्दों के तीर
छलनी कर गए
छलनी कर गए
को जाने पीर .
********
प्रकृति प्रेम
बातों में नहीं कहो
कर्मों से बोलो .
********
नौका का हश्र
नदी पार कराये
खुद पानी में .
********
गंगा क्यों रोये ?
इतने पाप धोये
मैली हो गयी .
*********
जल से प्राण
मर्म को समझना
अभी जल्दी है।
*********
हर पग पे
वहशी खड़े हैं तो
बचोगी कैसे ?
*********
कीमतें तय
क्या चाहिए तुमको ?
मुंह तो खोलो।
*********
आत्मा रोती है
उनके कटाक्षों से
कोई दंड है?
*********
बेलगाम हैं
सभ्यता हार गयी
दोषी कौन है?
**********
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प्रकृति प्रेम
बातों में नहीं कहो
कर्मों से बोलो .
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नौका का हश्र
नदी पार कराये
खुद पानी में .
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गंगा क्यों रोये ?
इतने पाप धोये
मैली हो गयी .
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जल से प्राण
मर्म को समझना
अभी जल्दी है।
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हर पग पे
वहशी खड़े हैं तो
बचोगी कैसे ?
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कीमतें तय
क्या चाहिए तुमको ?
मुंह तो खोलो।
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आत्मा रोती है
उनके कटाक्षों से
कोई दंड है?
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बेलगाम हैं
सभ्यता हार गयी
दोषी कौन है?
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8 टिप्पणियां:
प्रकृति प्रेम
बातों से नहीं कहो
कर्मों से बोलो ... बिल्कुल हाइकु की तरह
आत्मा रोती है
उनके कटाक्षों से
कोई दंड है?
बहुत खूब
आत्मा रोती है
उनके कटाक्षों से
कोई दंड है?
(मत सहो लोग बड़े उदंड
परिवार को कर देते खंड खंड
कम शब्दों में अधिक बात कहने की यह विधा भी अनोखी है। मुझे यए खास पसंद आया ..
प्रकृति प्रेम
बातों से नहीं कहो
कर्मों से बोलो .
बहुत सुंदर हाइकु ... आप तो माहिर हो गईं हैं ।
सटीक हाईकू!!
संगीता जी , जब गुरु पीठ थपथपाता है बहुत ख़ुशी होती है, वैसे मैं इस विधा से वाकई परिचित नहीं थी क्योंकि हिंदी मेरा विषय सिर्फ बी ए तक रहा है.
वाह हर हाइकु ...लाज़बाब
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