औरत की आखों को
कभी झील कहा उनको,
कभी सागर की गहराई नापी
नील गगन की विशालता से
उनको परिभाषित किया गया,
अनुसुइया सी ममता देखी,
राधा का प्रेम छलका उनमें
सीता सी सादगी से भरी
दुर्गा सी दृढ़ता देखी.
कुछ कवियों की कल्पना थी
कुछ पौराणिक ग्रंथों की बातें
आज झांके जब उन आखों में
कुछ रूप हमें ऐसा ही दिखा --
झाँका नम आखों में मैंने
वे एक माँ की आँखें थीं
बरसी थी ममता से भरी वे
अपने सब लालों पर
पर आज
वे नम थी
अपनी ममता के तिरस्कार
औ'
बिखरे सपनों से
उसकी ममता औ' त्याग
उसका फर्ज करार दिए थे.
बेटे के फर्ज सिर्फ अपने
लालों में सिमटे थे.
फिर भी
दिल में लिए दुआएं
बैठी थी मंदिर के द्वारे
बच्चों के हित में डूबी थी.
झाँका नम आखों में
वे एक पत्नी की आँखें थी
करके समर्पित जीवन अपना
धारण कर कुछ चिह्न
बनी थी कन्या से वो नारी
बदले में जो कुछ पाया
अपने घर के तानों से वो
कभी मुक्त न हो पाई
फिर भी
तन मन से रही समर्पित
नम आखें कहती हैं
मुझे बता दो कोई
मेरा अपना अस्तित्व कहाँ हैं?
मैं कौन हूँ?
किसी की बेटी,
बहन किसी की ,
पत्नी हूँ मैं ,
और बहू बनी हूँ .
फिर माँ बनकर है इति ,
बस इतनी से परिभाषा है
इसी के साथ जाना है।
झाँका उन नाम आखों में
वे एक बेटी की आँखें थी।
हाय लड़की हुई !
फिर लड़की !
बड़ा भार है?
लड़की है दबा कर रखो
सुना सभी कुछ
सह न पाई
उन नम आखों की पीड़ा
किसने पढ़ी है?
किसने जानी?
पूछ रही वे नम आखें
आखिर ऐसा क्यों है?
अनचाहे हम क्यों हैं?
हमें हमारे ही लोग
क्यों नहीं चाहते हैं?
जीकर भी क्या मिला हमें?
उपेक्षा, तिरस्कार और बंदिशोंं ने
आत्मा की हत्या कर दी,
पूछ रही है वही
वो कैसी नारी थी?
पूजा था जिसको सबने
नमन किया था जग ने।
फिर क्यों हम
रहे अधूरे
मुकाम अपना खोज रहे हैं
और मुकाम
शायद मिल भी जाए
शायद सब को नहीं मिलेगा .
नम आखों के
उठते प्रश्नों को
उत्तर कौन है देगा?
उत्तर कौन है देगा?
5 टिप्पणियां:
नम आखों के
उठते प्रश्नों को
उत्तर कौन है देगा?
सार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ... आभार
मानव को एक दिन इन प्रश्नो के उत्तर देने ही पडेंगे
उफ़ कितना दर्द समेटे हैं ये आँखे
नम आखों के
उठते प्रश्नों को
उत्तर कौन है देगा....SHAYAD KOI NHI...AASAN PRASHAN NHI HAI YE....
अंतर्स्पर्शी/भाव भरी सुन्दर रचना....
सादर
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