जन्म लिया
फिर होश संभाला
कुछ आदर्श औ' मूल्य
मेरे लिए अमूल्य थे
शायद प्रकृति ने भरे थे
जिया उनको
पिया हलाहल
इस जगत के विषपायी
शायद देख न पाए,
दंश पर दंश दिए
औ'
मैं जीवन भर
लक्ष्य के सलीब
काँधे पे धरे
चलता ही रहा।
पत्थरों की चोट भी
चुपचाप सहता रहा
व्यंग्य और कटाक्षों से
छलनी हुआ बार बार
विष बुझे वचनों के तीर
आत्मा में चुभते रहे
पर
अब तक शिव नहीं बन पाया।
अब
वो हलाहल कंठ से
नीचे उतरने लगा
तब लगा कि
मैं शिव नहीं हूँ
न अब बनाकर जीना है
जिनका दिया विष है
उन्हें ही
अब वापस करना है ,
मैं शिव नहीं हूँ
और हो भी नहीं सकता हूँ।
फिर होश संभाला
कुछ आदर्श औ' मूल्य
मेरे लिए अमूल्य थे
शायद प्रकृति ने भरे थे
जिया उनको
पिया हलाहल
इस जगत के विषपायी
शायद देख न पाए,
दंश पर दंश दिए
औ'
मैं जीवन भर
लक्ष्य के सलीब
काँधे पे धरे
चलता ही रहा।
पत्थरों की चोट भी
चुपचाप सहता रहा
व्यंग्य और कटाक्षों से
छलनी हुआ बार बार
विष बुझे वचनों के तीर
आत्मा में चुभते रहे
पर
अब तक शिव नहीं बन पाया।
अब
वो हलाहल कंठ से
नीचे उतरने लगा
तब लगा कि
मैं शिव नहीं हूँ
न अब बनाकर जीना है
जिनका दिया विष है
उन्हें ही
अब वापस करना है ,
मैं शिव नहीं हूँ
और हो भी नहीं सकता हूँ।
6 टिप्पणियां:
गहन अनुभूति को शब्द दिये हैं ...
गहन भाव संयोजन लिए ..उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
शिव कल्याणकारी है लेकिन त्रिनेत्रधारी भी है . अनुपम रचना .
behad gahan abhivyakti
गहरी अभिव्यक्ति!! उम्दा!
bahut gahre soch hain aapke:)
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