मैं सोचती हूँ
अतीत से वर्तमान तक
अपने वजूद को
अपने वजूद को
जो मैंने कभी देखा ही नहीं,
जन्म से अबतक
एक न एक रिश्ते के लिबास में
लिपटी अनुशरण करती रही.
मैंने कब सोचा?
क्या चाहा?
क्या पाया?
किसी ने नहीं देखा
मैं भी पागल सी
उनकी हंसी में हंसती रही
उनके ग़मों में रोती रही.
आज मेरी आत्मा
चीत्कार कर उठीखो कर अपनी अहमियत
अपने वजूद की
मांग रही है
मुझसे हिसाब जिन्दगी का
कहाँ से लाऊं?
मेरा हिस्से में तो
कुछ भी नहीं आया.
जीवन भर
बाप की बेटी,
भाई की बहन,
पति की पत्नी
बेटे की माँ,
यही तो मेरा परिचय रहा
मेरा वजूद क्या था?
इनसे लिपटे दायित्वों कि पूर्ति
इनकी खुशी पर न्योछावर होना
वजूद की पहचान कौन देगा?
अरे ये भी नहीं सुना,
मेरे पीछे मेरी
बेटी, बहन, पत्नी या माँ भी है.
मेरा वजूद भी
समुद्र में मिलने वाली
सरिता सा
हो चुका था .
जीवन समुद्र था
औ मैं एक सरिता
फिर सच वही हुआ
पानी में मिलकर पानी
अंजाम ये कि पानी
मैं उस सागर में खो गयी
न वजूद था और न मैं थी.
8 टिप्पणियां:
हर स्त्री का यही वजूद रहता है ..कभी उसका खुद का परिचय कहाँ समझते हैं लोंग ..अच्छी प्रस्तुति
सागर में सरिता बन रहने का भी अपना महत्त्व है। आप ने अपना वजूद नहीं खोया, बल्कि आप का वजूद इतना विशाल हो गया कि आप से जुड़े सब रिश्ते उसमें समां गये। वृ्क्ष का तना नारी है और बाकी सारे रिश्ते डालियाँ और फ़ूल उस की मेहरबानी से हैं लेकिन तने को कोई नहीं देखता उस पर कोई कविता नहीं लिखी जाती, फ़िर भी तना जानता है कि वो है तो वो सुंदर फ़ूल हैं जिनकी सुंदरता पूरे जमाने को अपने मोहपाश में बांध रही है।
.अच्छी प्रस्तुति..
वजूद तलाशती हर स्त्री के जज्बातों को बहुत ही सुंदर तरह से प्रस्तुत किया है आपने...
अनीता,
ये सिर्फ मेरे वजूद की बात नहीं है और न ही उनके जो अपनी पहचान खुद हैं. लाखों महिलाएं इसी वजूद कि तलाश में कभी न कभी अपनी आत्मा का सामना कर रही होती हैं और कितने से मिलने के बाद ये कलम चली है उनके दर्द कोउकेरने के लिए.
इस वजूद की तलाश मे ही उम्र गुज़र जाती है …………बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
bahut khubsurat......!!
sahi abhivyakti.naari ke bina parivaar nahin.yehi uska vajood hai koi maane ya na maane.
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