खाली हाथ खाली मन खाली खाली सा चमन ,
न अब इसमें खिलती हैं कलियाँ बसंत में ,
नजर कुछ ऐसी लगी दुनियाँ की खुशियों को मेरी,
बस जो भी आता है खालीपन ही दे जाता है अंत में।
* * * * * *
दुनियाँ कहती है बस एक बार तो मुस्कराओ
बाग़ के फूलों सी सुबह सुबह तुम भी खिल जाओ ,
मुस्कराने की कोशिश इस कदार नाकाम हुई ,
कि खुश तो बहुत हुई तो भी आंसूं ही छलक आये।
* * * * * *
कुछ ऐसे ही रच जाता है बैठे बैठे कभी कभी,
जिसमें पीड़ा किसी की और आँसू किसी के होते हैं,
कब उनको अपने में ढाल कर हमने जी लिया,
गम उनका और अपने दिल पर लेकर हम रोते हैं।
* * * * * *
वादा किया था एक दिन आयेंगे lautkar ,
चौखट पर टिके हुए मुझे वर्षों गुजर gaye ,
पगडण्डी से उड़ाती हुई धूल देखकर लगता है
शायद उनको वादे का इन्तजार पता नहीं ।
सोमवार, 4 जुलाई 2011
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12 टिप्पणियां:
कुछ ऐसे ही रच जाता है बैठे बैठे कभी कभी,
जिसमें पीड़ा किसी की और आँसू किसी के होते हैं,
कब उनको अपने में ढाल कर हमने जी लिया,
गम उनका और अपने दिल पर लेकर हम रोते हैं।
ज़िन्दगी की सच्चाई कह दी।
कुछ ऐसे ही रच जाता है बैठे बैठे कभी कभी,
जिसमें पीड़ा किसी की और आँसू किसी के होते हैं,
कब उनको अपने में ढाल कर हमने जी लिया,
गम उनका और अपने दिल पर लेकर हम रोते हैं।
वाह ..बहुत खूब लिखा है यूँ ही ..सुन्दर ..
namskar !
sunder abhivyakti . sadhuwad
saadar
दुनियाँ कहती है बस एक बार तो मुस्कराओ
बाग़ के फूलों सी सुबह सुबह तुम भी खिल जाओ ,
मुस्कराने की कोशिश इस कदार नाकाम हुई ,
कि खुश तो बहुत हुई तो भी आंसूं ही छलक आये।
* * * * * *bahut hi bhawuk karti rachna
वाह ..बहुत खूब लिखा है ..सुन्दर ..
सुँदर शब्दों में गुंथी भाव प्रवण कविता . आभार .
bhut hi bhaavpur apni si lagti rachna....
वाह!
मुक्तछन्द का तो अपना ही आनन्द है!
चारों मुक्तक बहुत बढ़िया लिखे है आपने!
नजर कुछ ऐसी लगी दुनियाँ की खुशियों को मेरी,
इस लाइन को पड कर लगा कि इसे युँ होना चाहिये शायद...
नजर कुछ ऐसी लगी मेरी खुशियों को दुनियाँ की...
कुछ ऐसे ही रच जाता है बैठे बैठे कभी कभी,
जिसमें पीड़ा किसी की और आँसू किसी के होते हैं,
कब उनको अपने में ढाल कर हमने जी लिया,
गम उनका और अपने दिल पर लेकर हम रोते हैं। bahut hi sunder apne dil ki baat kah di.dil me utar gai ye lines to.
आपका आदेश सर आँखों पर और मैं उसको ठीक कर लेती हूँ. दिशा दर्शन के लिए आभार.
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