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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

हम साथ होंगे।

पीछे पीछे जाने की आदत नहीं है,
आवाज दोगे तो हम साथ होंगे

नजर आयें फिर भी ये अहसास होगा,
तुम्हारे हाथों में हर वक्त मेरे हाथ होंगे

कदम से कदम मिलाकर हम चलेंगे,
तुमसे कोई मेरे निहित स्वार्थ होंगे,

छलके कभी गम में तेरी आँखों से आंसूं,
समेटने को मेरा आँचल ' हाथ होंगे

बिछाते चलेंगे हम फूल तेरी राहों में,
गर काँटों से भरे कोई हालात होंगे

गर अकेले चलोगे अँधेरे में फिर भी,
उजाले बने हम तेरे साथ साथ होंगे

14 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

कदम से कदम मिलाकर हम चलेंगे,
तुमसे न कोई मेरे निहित स्वार्थ होंगे,

वाह...इस ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकारें...

नीरज

shikha varshney ने कहा…

छलके कभी गम में तेरी आँखों से आंसूं,
समेटने को मेरा आँचल औ' हाथ होंगे।
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं रेखा जी!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

"गर अकेले चलोगे अँधेरे में फिर भी,
उजाले बने हम तेरे साथ साथ होंगे।"

बहुत अच्छा लिखा है आपने.

सादर
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मूर्ख ही तो हैं

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना...बधाई.

Dinesh ने कहा…

Bahut sundar... lekha ha apne.. apki rachna bahut umda aur dil ko chune wali hoti hain.. Sadhuwad.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

गर अकेले चलोगे अँधेरे में फिर भी,
उजाले बने हम तेरे साथ साथ होंगे।
zarur...

मनोज कुमार ने कहा…

एक ख़ूबसूरत रचना।

वाणी गीत ने कहा…

खुशनसीब होंगे जिनके साथ इन लोगों के हाथ होंगे ...
सार्थक सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह ..ऐसा साथ मिले तो क्या बात है ..बहुत सुन्दर

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 04 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.blogspot.com/

अजय कुमार ने कहा…

खूबसूरत रचना ,बधाई

vandana gupta ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना।

सदा ने कहा…

गर अकेले चलोगे अँधेरे में फिर भी,
उजाले बने हम तेरे साथ साथ होंगे।

वाह ...बहुत कुछ कहती यह पंक्तियां ....।

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

bahut khoobsurat abhivyakti.