जब बहुत पास से
गुजरे तुम
तुम्हारी खुशबू
मेरे चारों तरफ फैल गयी.
गहरी श्वास भरी
और अहसास तुम्हारा होते ही,
आवाज दी -- कहाँ हो तुम?
आवाज तो निकली
लेकिन फिर वो
टकरा के बादलों से
चारों तरफ गूँजने लगी .
गूँजती रही
फिजां में बहुत देर तक
बस
मिलने की घड़ी न आई
आँखों में
आँसू लिए अफसोस के
जा बैठी खिड़की में
फिर
मायूस , खामोश मेरी आवाज
वापस मेरे पास आ गयी
तुमसे मिले बगैर
शायद मिलना नसीब में न था.
5 टिप्पणियां:
आदरणीय रेखा श्रीवास्तव जी
नमस्कार !
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
kai baar zindagi bas yun hi gujar jati hai...
मार्मिक कविता है।
एक मार्मिक कविता के लिये धन्यवाद
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