ये साठ साला औरतें !
ये कल की साठ साला औरतें,
घर तक ही सीमित रहीं,
बहुत हुआ तो
मंदिर, कीर्तन और जगराते में,
पहन कर हल्के रंग की साड़ी,
चली जाती थीं।
चटक-मटक अब कहाँ शोभा देगा उन्हें
और कभी कभी तो उनकी
आने-जाने की कुछ साड़ियाँ वर्षों तक
चलती रहती थी,
कहीं गईं तो पहन लिया
और
आकर उतार कर बक्से में धर दिया।
ये कल की साठ साला औरतें -
हाथ पकड़ कर पोते-पोतियों के
पड़ोस में जाकर बैठ आती,
कुछ अपने मन की कह कर,
कुछ उनके मन की सुन आती।
वही तो हमराज होती थीं।
पति के साथ बैठकर बतियाने का रिवाज भी ही कम था,
जरूरत पर बतिया लो,
पैसे माँग लो या
कहीं बुलावे में जाना है, की सूचना दे दो।
ये थी कल की साठ साला औरतें।
और
आज की साठ साला औरतें-
लगती ही नहीं है कि साठ साला हैं,
आज तो जिंदगी शुरू ही अब होती है,
रिटायरमेंट तक दौड़ते भागते,
घर बनाते, बच्चों के भविष्य को सजाते निकल जाता है।
कब सजने का सोच पाईं,
अब किटी पार्टी का समय आया है,
अब सखी समूह में घूमने का समय आया है,
नहीं बैठती है, अब बच्चों को लेकर पार्क में,
खुद योग में डूब कर स्वस्थ रहना सीख जाती हैं।
तिरस्कार नयी पीढ़ी का क्यों सहें?
अपने को अपनी उम्र में ढाल लेती हैं।
अपने गुणों को डाल कर नेट पर समय बिताती हैं,
अपने गुणों से ही पहचान बनाती हैं।
जिंदगी जिओ जब तक,
जिंदादिली से जिओ ,
जो संचित अनुभव है, बाँटो और खर्च करो,
पुरानी तोड़कर अवधारणा फैल रहीं है दुनिया में।
ये साठ साला औरतें लिख रहीं इतिहास नया।
ये आज की साठ साला औरतें,
युवाओं से भी युवा है।
जीना हमें भी आता है,
कहकर मुँह चिढ़ा रहीं हैं नयी पीढ़ी को,
वह पहनतीं हैं जो सुख देता है,
सुर्ख़ रंगों में सजे परिधान संजोती हैं,
लेकिन अब भी लोगों की आँखों में किरकिरी की तरह
खटक जाती है इनकी जिंदादिली
क्योंकि
आज की साठ साला औरतें
सारी बेड़ियाँ तोड़ना चाहती है ।
8 टिप्पणियां:
ग़ज़्ज़ब ..... सच्ची , हमने भी 2007 - 2008 से ऑरकुट और ब्लॉग में अपनी पहचान बनाई थी । और उसका नतीजा कि बहुत से साथियों से मुलाकात हुई और जान पहचान का दायरा बढ़ा । आपसे भी बहुत प्यारी मुलाकात रही थी ।
सारी बेड़ियाँ तोड़ना चाहती है ।
सटीक..
आभार..
सादर..
समय के प्रवाह को धार देती सुंदर रचना । बधाई दीदी ।
क्या जबरदस्त लिखा है आपने।
अब जीवन का वह पड़ाव जब जीवन को नीरस मानकर उमंग और उत्साह से दूर होकर बोझ की तरह जीया जाने का प्रचलन समाप्त हो रहा है।
उम्र साठ हो जाने से जीवन रस सूख नहीं जाता ,सुनो स्त्रियों कोई भी हो तुम स्वयं से प्रेम करो।
-----
बहुत सुंदर,सकारात्मकता से भरपूर प्रेर अभिव्यक्ति।
सादर।
लेकिन अब भी लोगों की आँखों में किरकिरी की तरह
खटक जाती है इनकी जिंदादिली
क्योंकि
आज की साठ साला औरतें
सारी बेड़ियाँ तोड़ना चाहती है ।
खटकेगी ही क्योंकि 'तुम क्या जानो' जैसे फतवे नहीं गढ़ पा रही नयी पीढ़ी...
बच्चों और घर का बोझ छोड़ फिर भी एहसान दिखाने को नहीं मिल रहख अब...
बहुत ही लाजवाब सृजन बदलते परिवेश पर।
बढ़िया लगी आपकी यह रचना😀
बहुत खूब लिखा।
"ये साठ साला औरतें लिख रहीं इतिहास नया"
बिल्कुल सही कहा आपने, ये इतिहास ही नहीं रच रही बल्कि युवा पीढ़ी के लिए प्ररेणा स्त्रोत भी बन रही है, उम्र की आखिरी पड़ाव में खुद को ज़िंदादिल रखना और नई टेक्नोलॉजी को सीखना आसान नहीं,
बेहतरीन सृजन,सादर नमस्कार 🙏
एक टिप्पणी भेजें