मैं भाव हूँ
उमड़ता हूँ तो छा जाता हूँ
काले बादलों सा,
बरसता हूँ तो भी छा जाता हूँ
कागजों पर स्याही के संग
कलम पर सवार होकर
देखा होगा आपने?
पीड़ा भी हूँ,
और उल्लास भी
रुदन हूँ औ' हास भी,
अपना भी हूँ औ' दूसरे की भी
बस अपना समझ जिया उसको,
गरल बन पिया उसको,
जीवन में कुछ नया कर गया,
देखा होगा आपने?
मैं शब्द हूँ,
उमड़ता हूँ दिमाग में
कभी कल्पना से,
कभी साक्षी बनने से
कभी तो भोक्ता भी होता हूँ,
ढल जाता हूँ -
कभी कविता में,
कभी कहानी में
उतर कर कागजों पर रच जाता हूँ।
देखा होगा आपने?
बस इसीलिए तो हर रूप में स्वीकृति हूँ,
पीड़ा, भाव और शब्दों की अनुकृति हूँ।
14 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर!!!
वाह , भाव --- कभी है कभी त्रास लाजवाब लिखा है आपने ।
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(४-०६-२०२२ ) को
'आइस पाइस'(चर्चा अंक- ४४५१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बेहतरीन सृजन ।
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
बहुत सुन्दर लेखन दी
गहन भाव लिए सुंदर रचना।
बेहतरीन
सादर
आभार..
पीड़ा भी हूँ,
और उल्लास भी
रुदन हूँ औ' हास भी,
वाह!!!
क्या बात...
बहुत ही लाजवाब ।
बेहद भावपूर्ण सुंदर रचना।
सादर।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
बहुत सुंदर
बहुत खूब👌👌
आप संभी का आभार , मेरी रचना तक आने के लिए।
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