हाइकु
ये धरा हिली
वो महसूस किया
हिला ये जिया।
***
भय में जीना
मरने से बुरा है
दण्ड निरा है।
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जीवन अब
अनुशासित जीना
नहीं है खोना।
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विश्व आ रहा
अब पीछे हमारे
वेदों के द्वारे।
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कोरोना क्या है?
प्रकृति की सज़ा है
एक रज़ा है ।
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जीवन में बिखरे धूप के टुकड़े और बादल कि छाँव के तले खुली और बंद आँखों से बहुत कुछ देखा , अंतर के पटल पर कुछ अंकित हो गया और फिर वही शब्दों में ढल कर कागज़ के पन्नों पर. हर शब्द भोगे हुए यथार्थ कीकहानी का अंश है फिर वह अपना , उनका और सबका ही यथार्थ एक कविता में रच बस गया.
9 टिप्पणियां:
सामयिक हाइकु। अच्छी रचना।
बढ़िया
वाह
सामयिक और सटीक | कितनी कमाल की शैली और विधा है ये दीदी |
आते रहे।
सटीक लिखा है ----
सामयिक और सुन्दर हाइकु
वाह!
वाह दीदी ! कितना अच्छा लिखा है। मैंने जैसे ही पढा तुरंत दोनों बच्चो को सुनाया। इस शैली में लिखने की मुझे आपसेट्रेनिंग लेनी है।
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