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रविवार, 17 नवंबर 2019

एक सच !



मौत
एक सच
हम जानते हैं,
उसकी आहट पहचानते हैं ,
फिर भी
स्वीकार नहीं कर पाते ।
जीवन दीप को
काल के झंझावातों से बचाने को
दोनों हाथों से
या कहें जितने जोड़ी हाथ हों
सब मिलकर भी
उसे बुझने से बचा नहीं पाते हैं।
एक साँस और उसके थमने के
बीच का फासला
सब कुछ ले जाता है -
किसी के सिर की छाया,
किसी की पूरी दुनिया ही
पूरी अधूरी जिंदगी के शेष अंतराल को
फिर भरने कोई नहीं आता ।
एक माला और एक जलता दीपक
सबको बता देता है ।
खत्म हो चुकी है
एक आत्मा की इहलोक की यात्रा ।


2 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शायद अंत का पता नहीं होता इसलिए लगता है अभी तो नहीं था ये अंत ... औ जुट जाते हैं उसे बचाने को ...
गहरा एहसास लिए रचना के भाव ...

Daisy ने कहा…

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