जब पलटती हूँ
अतीत के पन्नों को
कुछ लम्हे, कुछ बातें,
जेहन में बसी हैं आज भी ,
कुछ तस्वीरें चस्पा हैं मित्रों की ।
एक उदासी भी
चुरा लेती थी हँसी सबकी,
नजरें तो लगी होती है चेहरे पर
उदासी का सबब जानने को
बात कुछ और थी ऐसे मित्रों की ।
ऐसे ही इस दिन
सारे मुस्कुराते हुए चेहरे
कहीं भी हों, सामने होते हैं,
कभी वीडियो पर , कभी पन्नों पर
यही तो फितरत होती है मित्रों की ।
हर रिश्ते से बड़ा,
हर दुख सुख में साथ खड़े,
हाथ थाम लेते हैं अपनों से
दुनिया बदले, नहीं बदलती है ,
इस जीवन में फितरत मित्रों की ।
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर कविता।
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