जन्मी कल थी,
उतर गोद से माँ की,
नन्हें नन्हें कदमों से
अभी अभी चलना सीखा ।
अँगुली माँ की छोड़
अभी तक न चलना आया था ।
सुनती शोर दूर तो
दौड़ छिप जाती
माँ के आँचल में ,
अभी नहीं आया था,
आँगन पार करना भी ,
हाथ पकड़ कर बाबा का,
करती थी पार गली में ।
नहीं जानती कौन है अपना
कौन पराया मानुष में ।
उन दानव सम मानुष ने
हर लिया मुझे
और कर दिया टुकड़े टुकड़े ।
मिले नहीं
वो बिखरे बिखरे ।
कहाँ गये ?
खोजे तो कोई ,
मैं ऊपर बैठी बुला रही
माँ बाबा को,
वो नीचे चीख चीख कर
पुकार रहे हैं मुझको ।
बस इतने दिन जीने दिया दरिंदों ने
माँ कैसे समझाऊँ तुमको
मैं पीड़ा अपने तन मन की ।
शायद इतनी ही कहानी थी मेरे जीवन की ।
उतर गोद से माँ की,
नन्हें नन्हें कदमों से
अभी अभी चलना सीखा ।
अँगुली माँ की छोड़
अभी तक न चलना आया था ।
सुनती शोर दूर तो
दौड़ छिप जाती
माँ के आँचल में ,
अभी नहीं आया था,
आँगन पार करना भी ,
हाथ पकड़ कर बाबा का,
करती थी पार गली में ।
नहीं जानती कौन है अपना
कौन पराया मानुष में ।
उन दानव सम मानुष ने
हर लिया मुझे
और कर दिया टुकड़े टुकड़े ।
मिले नहीं
वो बिखरे बिखरे ।
कहाँ गये ?
खोजे तो कोई ,
मैं ऊपर बैठी बुला रही
माँ बाबा को,
वो नीचे चीख चीख कर
पुकार रहे हैं मुझको ।
बस इतने दिन जीने दिया दरिंदों ने
माँ कैसे समझाऊँ तुमको
मैं पीड़ा अपने तन मन की ।
शायद इतनी ही कहानी थी मेरे जीवन की ।
2 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति
बेहद दुखद और अफसोसजनक
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