प्रेम
वह पवित्र भाव ,
जिसमें सिर्फ और सिर्फ
निर्मल, निश्छल और निष्पाप
आत्मा का समावेश है,
कहीं कोई
तृष्णा , चाह या स्वार्थ नहीं,
आत्मा से आत्मा का
मिलन ही प्रेम है।
ये जरूरी तो नहीं
कि रुक्मणी का प्रेम
राधा सा प्रेम हो ,
गोपियों का प्रेम
सत्यभामा सा अधिकार चाहे।
तभी तो राधा
सदैव कृष्ण के नाम से जुडी
पहले राधा फिर कृष्ण
राधाकृष्ण , राधारमण
राधेश्याम
यही सम्बोधन कृष्ण के प्रतीक
किस लिए बने ?
प्रेम के आत्मा से जुड़े
रिश्तों का प्रतीक रूप
ये प्रेम कभी सम्पूर्ण न हुआ हो ,
जुड़े तो लेकिन
इस दुनियाँ की नजर में
मीरा का प्रेम,
राधा का प्रेम ,
सिर्फ पूजने के लिए है।
प्रेम पूजा ही तो है।
वह पवित्र भाव ,
जिसमें सिर्फ और सिर्फ
निर्मल, निश्छल और निष्पाप
आत्मा का समावेश है,
कहीं कोई
तृष्णा , चाह या स्वार्थ नहीं,
आत्मा से आत्मा का
मिलन ही प्रेम है।
ये जरूरी तो नहीं
कि रुक्मणी का प्रेम
राधा सा प्रेम हो ,
गोपियों का प्रेम
सत्यभामा सा अधिकार चाहे।
तभी तो राधा
सदैव कृष्ण के नाम से जुडी
पहले राधा फिर कृष्ण
राधाकृष्ण , राधारमण
राधेश्याम
यही सम्बोधन कृष्ण के प्रतीक
किस लिए बने ?
प्रेम के आत्मा से जुड़े
रिश्तों का प्रतीक रूप
ये प्रेम कभी सम्पूर्ण न हुआ हो ,
जुड़े तो लेकिन
इस दुनियाँ की नजर में
मीरा का प्रेम,
राधा का प्रेम ,
सिर्फ पूजने के लिए है।
प्रेम पूजा ही तो है।
1 टिप्पणी:
प्रेम का भाव ही पवित्र है ... सदा पूज्य है ...
अच्छी रहना ...
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