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बुधवार, 15 अप्रैल 2015

प्रेम !

प्रेम 
वह पवित्र भाव ,
जिसमें सिर्फ और सिर्फ 
निर्मल, निश्छल और निष्पाप 
आत्मा का समावेश है,
कहीं कोई 
तृष्णा , चाह या स्वार्थ नहीं,
आत्मा से आत्मा का 
मिलन ही प्रेम है। 
ये जरूरी तो नहीं 
कि रुक्मणी का प्रेम 
राधा सा प्रेम हो ,
गोपियों का प्रेम 
सत्यभामा सा अधिकार चाहे। 
तभी तो राधा 
सदैव कृष्ण के नाम से जुडी 
पहले राधा फिर कृष्ण 
राधाकृष्ण , राधारमण 
राधेश्याम 
यही सम्बोधन कृष्ण के प्रतीक 
किस लिए बने ?
प्रेम के आत्मा से जुड़े 
रिश्तों का प्रतीक रूप 
ये प्रेम कभी सम्पूर्ण न हुआ हो ,
जुड़े तो लेकिन 
इस दुनियाँ की नजर में 
मीरा का प्रेम,
राधा का प्रेम ,
सिर्फ पूजने के लिए है। 
प्रेम पूजा ही तो है।

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रेम का भाव ही पवित्र है ... सदा पूज्य है ...
अच्छी रहना ...