कितने अजीब
होते हैं ये भाव
मन में उमड़े बादल से
जल्दी से उठी
सोचा दर्ज कर लूँ ,
कागज और कलम
जब तक हाथ में आई
वो कपूर की तरह
काफूर चुके थे।
बहुत सोचा
वो शब्द क्या थे ?
वो बात क्या थी ?
शब्दों में से कोई एक
पकड़ में नहीं आया
और फिर
कलम रख दी।
कुछ लिखने को था ही कहाँ ?
होते हैं ये भाव
मन में उमड़े बादल से
जल्दी से उठी
सोचा दर्ज कर लूँ ,
कागज और कलम
जब तक हाथ में आई
वो कपूर की तरह
काफूर चुके थे।
बहुत सोचा
वो शब्द क्या थे ?
वो बात क्या थी ?
शब्दों में से कोई एक
पकड़ में नहीं आया
और फिर
कलम रख दी।
कुछ लिखने को था ही कहाँ ?
3 टिप्पणियां:
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
होता है कई बार ऐसा ... भाव आते हैं और उतनी ही टी से निकल जाते हैं ...
good post
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