गुरुवर तुमि नमन औ' वंदन बारम्बार ,
भाव सुमन अर्पित है करिए स्वीकार .
शिशुपन से जो थामा मुझको ,
पग पग पर ये ही डगर दिखाई .
काँपे पग डरसे या मन घबराया
तुरत ही अपनी अंगुली थी थमाई .
सत-असत की धूप -छाँव से
बचने की तुमने ही तो जुगत बताई .
रोशन की आस मुक्ति मार्ग की
फिर मन में एक अलख जगाई .
तम कितना ही गहरा क्यों न हो ?
किरण आस की उसमें दिखलाई .
साथ छोड़ने से पहले मुझको ,
पार होने को एक पतवार थमाई .
भाव सुमन अर्पित है करिए स्वीकार .
शिशुपन से जो थामा मुझको ,
पग पग पर ये ही डगर दिखाई .
काँपे पग डरसे या मन घबराया
तुरत ही अपनी अंगुली थी थमाई .
सत-असत की धूप -छाँव से
बचने की तुमने ही तो जुगत बताई .
रोशन की आस मुक्ति मार्ग की
फिर मन में एक अलख जगाई .
तम कितना ही गहरा क्यों न हो ?
किरण आस की उसमें दिखलाई .
साथ छोड़ने से पहले मुझको ,
पार होने को एक पतवार थमाई .
8 टिप्पणियां:
सतगुरु को सादर नमन
रोशन की आस मुक्ति मार्ग की
फिर मन में एक अलख जगाई .
bahut sundar naman .
आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।
बहुत सुंदर भाव .....
गुरु महिमा का मान करते सुन्दर भाव ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बहुत सुंदर..
बहुत ही सुंदर भाव लिए सार्थक रचना...
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