जिन्दगी
मुझे तुझसे
कोई शिकायत नहीं
जो भी दिया
बहुत काफी है ,
क्योंकि
तूने मुझे संतोष दिया है .
देने को
औरों के लिए
वह सम्पदा दी है
जो कभी ख़त्म नहीं होगी
जिसे जरूरतमंद देखा
उसे भरपूर दिया
मुझे तूने प्यार इतना दिया है ..
दौलत तो नहीं दी
अथाह ,असीमित
लेकिन इतनी तो दी ,
खाली झोली में
कुछ तो डालो
भूखे न सोये कोई
ऐसे विचार तो तूने ही दिए हैं .
महल नहीं
बंगला भी नहीं ,
इस धरती पर
एक झोपड़ी तो दी है ,
जिसकी छत तले
दे सकूं पनाह
खुले आसमान तले
जीने वालों को
ऐसी सोच भी तूने ही तो दी है .
मुझे तुझसे
कोई शिकायत नहीं
जो भी दिया
बहुत काफी है ,
क्योंकि
तूने मुझे संतोष दिया है .
देने को
औरों के लिए
वह सम्पदा दी है
जो कभी ख़त्म नहीं होगी
जिसे जरूरतमंद देखा
उसे भरपूर दिया
मुझे तूने प्यार इतना दिया है ..
दौलत तो नहीं दी
अथाह ,असीमित
लेकिन इतनी तो दी ,
खाली झोली में
कुछ तो डालो
भूखे न सोये कोई
ऐसे विचार तो तूने ही दिए हैं .
महल नहीं
बंगला भी नहीं ,
इस धरती पर
एक झोपड़ी तो दी है ,
जिसकी छत तले
दे सकूं पनाह
खुले आसमान तले
जीने वालों को
ऐसी सोच भी तूने ही तो दी है .
12 टिप्पणियां:
sarthak prastuti .aabhar
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ८ /७ /१ ३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
संतोष ही सबसे बड़ा धन है ..... अच्छी प्रस्तुति
बहुत सुंदर, आभार
यहाँ भी पधारे ,
रिश्तों का खोखलापन
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html
sunadr rachna ,bahut khoob
संतुष्ठी के भाव से परिपूर्ण सार्थक रचना के लिये बधाई.
सकारात्मक सोच
वाह बहुत खूब रेखा दीदी
सोच हो तो ऐसी हो ...जो आसान नहीं है हर किसी के लिए
जो पाया उसकी कदर बिरले ही कर पाते हैं -कितना कुछ दिया है जिन्दगी ने !
कुछ नहीं से कुछ होना अच्छा होता है।
आपने जीवन के सत्य को रख दिया हम सभी के सामने.....
नमन इस सोच को!!
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