माँ ओ मेरी माँ
कल मैंने देखा
एक सपना
तब जाना कि
तेरा ये रूप क्यों
मुझे ईश्वर सा लगता है .
सपने में
ईश्वर आये
अपने वृहत स्वरूप में
उनके उन रूपों में
माँ तेरा भी चेहरा था ,
तुझे देख कर
मैंने तब ईश्वर से ये पूछा
मेरी माँ तुममें कैसे है ?
वे बोले
सृष्टि मैं करता हूँ ,
सृष्टि धरा पर
ये माँ करती है ,
अपना अंश
उसको देकर मैं
माँ बनाया करता हूँ
फिर वो आकर धरा पर
जननी बन
मेरा धर्म निभाती है ,
मैं आकर
हर जीव को
धरती पर पाल नहीं सकता हूँ
अपने अंश रूप से
तुम सब को
पाला करता हूँ।
वो जन्म देती है,
पालती है ,
संस्कार देकर
एक बेहतर मानव
बनाती है .
इसी लिए धरती पर
मैं उसमें ही रहता हूँ
वो मुझेमें दिखलाई देती है।
तब जाना माँ
कि तू ऐसी क्यों हैं?
माँ
तू ही मेरी
जननी , पालक , शिक्षक
औ' ईश्वर रूप
तुम्हें नमन करता हूँ।
तुम्हें नमन करता हूँ।
12 टिप्पणियां:
माँ का यह रूप कितने लोग समझ पाते हैं .... बहुत सुंदर रचना
गजब की अनुभूति है मां के स्वरूप में
हृदयस्पर्शी रचना
माँ जैसी कुछ नहीं इस दुनिया. सुन्दर रचना.
अद्भुत रचना...माँ का अहसास जहाँ भी हो...वह अद्भुत तो होना ही है!!
माँ को सच्चे अर्थों में परिभाषित करती बहुत ही बेहतरीन रचना ! इतनी सुन्दर रचना के सृजन के लिये आपको बहुत-बहुत बधाई !
ईश्वर का रूप ही तो है माँ ………बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
बेहतरीन कविता
सादर
सुन्दर रचना.
सचमुच रेखा जी ,मन ने जो साक्षात्कार किया वह अक्षरशः सही है.ईश्वर तो सर्वसाधन संपन्न है पर माँ साधनहीना हो कर भी अपनी संतान के लिये कोई कसर नहीं रखती .
साधुवाद स्वीकारें !
सच लिखा है आपने ईश्वर खुद इस धरती पर स्वयं हर जगह हर वक्त उपस्थित नहीं रह सकते। इसलिए उन्होने माँ बनायी...और ना सिर्फ बनायी, बल्कि खुद भी उसे अपने से ऊपर का दर्जा दिया चाहे यशोदा के रूप में दिया हो, या फिर केकई के रूप में माँ से बड़ा इस संसार में स्वयं ईश्वर भी नहीं।
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