गर तुम्हें गुरेज है मुहब्बत में पहल करने से,
तो हम भी दुनियाँ के सामने नुमाइश नहीं करते।
ये वो पाक जज्बा है पलता है रूह में भीतर ही,
मिल न सका तो मुकद्दर की आजमाइश नहीं करते।
छिपाकर भी मुहब्बत के अहसास नहीं मरा करते,
तुम न चाहो तो फिर तुम्हारी ख्वाहिश नहीं करते।
रूह मेरी है, अहसास भी मेरे है नियामत मेरे लिए ,
बहुत दिया है खुदा ने अब कोई फरमाइश नहीं करते।
तो हम भी दुनियाँ के सामने नुमाइश नहीं करते।
ये वो पाक जज्बा है पलता है रूह में भीतर ही,
मिल न सका तो मुकद्दर की आजमाइश नहीं करते।
छिपाकर भी मुहब्बत के अहसास नहीं मरा करते,
तुम न चाहो तो फिर तुम्हारी ख्वाहिश नहीं करते।
रूह मेरी है, अहसास भी मेरे है नियामत मेरे लिए ,
बहुत दिया है खुदा ने अब कोई फरमाइश नहीं करते।
15 टिप्पणियां:
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल... वाकई मोहब्बत एक पाक ज़ज्बा है...
hmm!! sach me di!! prem ke khubsurat ahsaas ko shabdo me peero diya aapne:)
छिपाकर भी मुहब्बत के अहसास नहीं मरा करते,
तुम न चाहो तो फिर तुम्हारी ख्वाहिश नहीं करते।
लाजवाब लिखा है आपने.
सादर
--------
अब नहीं....
"रूह मेरी है, अहसास भी मेरे है नियामत मेरे लिए ,
बहुत दिया है खुदा ने अब कोई फरमाइश नहीं करते"
वाकई खुदा का दिया जब साथ है तो न तो ख्वाहिश की जरूरत है और न ही फरमाइश की जरूरत है. दीदी, बेहद खूबसूरत गजल और उतने ही सुन्दर भाव.
छिपाकर भी मुहब्बत के अहसास नहीं मरा करते,
तुम न चाहो तो फिर तुम्हारी ख्वाहिश नहीं करते।
दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल!
बेहतर।
बेहद खूबसूरत
खूबसूरत ग़ज़ल...सुन्दर भाव !
......बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल!
अरे वाह , कित्ती सुँदर ग़ज़ल . मै तो गुनगुना रहा हूँ. ऐस ही ग़ज़ल पढवाते रहिये .
छिपाकर भी मुहब्बत के अहसास नहीं मरा करते,
तुम न चाहो तो फिर तुम्हारी ख्वाहिश नहीं करते।
बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति।
छिपाकर भी मुहब्बत के अहसास नहीं मरा करते,
तुम न चाहो तो फिर तुम्हारी ख्वाहिश नहीं करते।
मोहब्बत के अहसासों से लबरेज़ बेहद उम्दा प्रस्तुति।
गजल की गहरी पकड़ नहीं है, इसलिए इस बारे में ज्यादा लिख नहीं सकती। लेकिन भाव अच्छे हैं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत खूबसूरत भाव हैं ..सुन्दर ..
एक टिप्पणी भेजें