अपने को मैंने बहुत पहले ही पढ़ लिया है
तभी तो जिन्दगी को इस तरह गढ़ लिया है,
अब क्या सुनाएँ ए दोस्त दास्ताने जिन्दगी,
वक़्त के पहले ही खुद सूली पर चढ़ लिया है।
तभी तो जिन्दगी को इस तरह गढ़ लिया है,
अब क्या सुनाएँ ए दोस्त दास्ताने जिन्दगी,
वक़्त के पहले ही खुद सूली पर चढ़ लिया है।
* * * * * *
ये कामना ही मेरी भगवान से,
जियें जब तक जियें सम्मान से,
दूर ही रखे वो मुझे अभिमान से,
मूल्य प्रिय हों सभी को जान से।
जियें जब तक जियें सम्मान से,
दूर ही रखे वो मुझे अभिमान से,
मूल्य प्रिय हों सभी को जान से।
9 टिप्पणियां:
in chaar linon me bahut kuch hai
आपकी इन चार पंक्तियों में बसी कामना ही तो मनुष्य को इन्सान बनाती है और यदा-कदा ईश्वरत्व भी प्रदानकर देती है.जीवन के लिए अमूल्य एवं मार्गदर्शी पंक्तियाँ .
गागर नें सागर है ये चार लाइनें!
कम हैं तो क्या गम हैं ..सुन्दर तो बहुत हैं.
दोनों मुक्तक सुन्दर भाव से गढे हैं
चार लाइनो मे पूरी ज़िन्दगी गढ दी है …………इन्सान इन्सान बन कर ही रह जाये तो काफ़ी है।
@ manoj ji ne sahi kaha
गागर नें सागर है ये चार लाइनें!
जीवन के लिए अमूल्य एवं मार्गदर्शी पंक्तियाँ|धन्यवाद|
aapke mukatak .bahut kam shabdon main bahut kehne ki kshmata liye hue hain..bahut khoob.
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