करना अपनी मौत का फैसला
क्या इतना ही आसान होता है?
पहले सौ बार दिल सोचता है,
अकेले ही जार जार रोता है।
अपने ग़मों की हदें गुजर जाने पर
इंसान कभी कभी आपा खोता है।
ख्याल अपने बच्चों का उसके जेहन में
एक नहीं बार बार सामने से गुजरता है।
जीवन के सुहाने और दुखद पलों का
गुजरा सिलसिला भी नजर में तैरता है।
डगमगाते हैं कदम उसके फिर
हालात का भी एक वास्ता होता है।
कुछ सुखद पलों का साया भी
उससे साहस को हिला भी देता है।
फिर दिल पर लगी चोट का अहसास
उसके फैसले पर मुहर लगा देता है।
इन पलों को गर टाल दे कोई तो
जिन्दगी का ही पलड़ा भरी होता है।
सोमवार, 16 मई 2011
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5 टिप्पणियां:
करना अपनी मौत का फैसला
क्या इतना ही आसान होता है?
पहले सौ बार दिल सोचता है,
अकेले ही जार जार रोता है।....bilkul sach kaha
आत्म हत्या उपरवाले के प्रति अन्याय है . जिजीविषा कमजोर ना होने पाए. सटीक अभिव्यक्ति
शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी मार्मिक रचना .
अपनी मौत का फैसला शायद कभी सोच कर नहीं लिया जा सकता ...आवेश इतना बढ़ जाये कि सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाए तब ही कोई ऐसा कर सकता है ...
मार्मिक रचना
"इन पलों को गर टाल दे कोई तो
जिन्दगी का ही पलड़ा भरी होता है।"
जब कोई अपने बेहद दुखद एवं त्रासद पलों को बुरा एवं डरावना सपना समझकर भुला देता है तो मौत पर जिंदगी भारी पड़ती है.अनुभव और सकारात्मक सोच से ओत-प्रोत रचना.
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