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गुरुवार, 12 मई 2011

फूल भी झरते हैं!

ये सच है
बोल बड़े अनमोल हैं भाई,
फिर ये भी सच है
अनमोल वही होते हैं
जिन्हें हम
बोलने से पहले तौल लें भाई.
वही शब्द और जीव वही
कहीं शीतल फाहे से
तपती आत्मा को
शांत कर देते हैं.
औ'
कहीं वही शब्द
अंतर तक बेध जाते हैं.
बुद्धि वही, सोच वही, इंसान वही
फिर क्यों?
कहीं हम विष वमन करते हैं
और कहीं
मुख से हमारे फूल झरते हैं.
दोषी कौन?
हम जो जला या सहला रहे हैं,
या फिर वो
जो जल रहे हैं और
अन्दर ही अन्दर राख हो रहे हैं.
अरे इंसान हैं हम
जीते तो सब अपने हिस्से के
दुःख और सुख हैं.
हम फिर क्यों
दूसरों के सीने पर
शब्दों के खंजर चला कर
लहूलुहान करते हैं,
जबकि उन्हीं शब्दों से
फूल भी झरते हैं.

6 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

हम फिर क्यों
दूसरों के सीने पर
शब्दों के खंजर चला कर
लहूलुहान करते हैं,
जबकि उन्हीं शब्दों से
फूल भी झरते हैं.

इतना समझ लें तो जीवन सरस ना हो जाये………बहुत सुन्दर रचना एक सीख देती है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सार्थक सन्देश देती अच्छी रचना

vandana gupta ने कहा…

तभी तो कहा गया है ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय ,औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय्।

मनोज कुमार ने कहा…

शब्द का महत्त्व है तभी तो कहते हैं तौल कर बोला करो।

M VERMA ने कहा…

तौल कर बोले गये शब्द ही प्रभाव छोड़ते हैं

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है बोल का महत्व तभी तक है जब तक वो अच्छे हों ... फूल की तरह झर रहे हों ...