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शुक्रवार, 25 मार्च 2011

तकदीर से जंग !

तकदीर मुस्करा कर
मुझसे ये बोली,
कहर ढाने में मैंने
कोई कसर नहीं छोड़ी,
फिर कहाँ से ?
तुमने चेहरे पर मुस्कान ओढ़ी
देख कर उसकी तरफ
मुस्करा कर मैं यूँ बोली,
तेरे कहरों को
मेरे मुस्कराहट और हंसी ने
हवा में उड़ा दिया है
ये जिन्दगी मेरी है,
उसने कभी भी
अपनी आस नहीं तोड़ी
अपने गम को
दूसरों की ख़ुशी में डुबो दिया है,
निकले तो वे मेरी
ख़ुशी बन चुके थे ,
फिर उनमें डूबकर
अपने गम भुला दिए हैं
अपनों ने गर साथ छोड़ा
हाथ दूसरों ने थमा दिया था,
बेशक प्यार मैं सिर्फ देती हूँ,
पर बदले में -
बहुत प्यार पाया है
फिर तुम कहाँ से जीती?
मेरी एक ख़ुशी छीनी '
मैंने दूसरे के आँसूं बाँट कर
ढेरों खुशियाँ बनायीं हैं
घिरी हूँ औरों की खुशियों से
फिर
अपनी कहाँ याद आई हैं?
यही है जिन्दगी मेरी
जिसे
मैंने अपने हाथों से बनायीं है

9 टिप्‍पणियां:

ashish ने कहा…

बेच कर खुशियाँ खरीदूं आंख का पानी , हाथ खाली है मगर व्यापार करता हूँ., आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ. जाने क्यू ये पंक्तियाँ याद आयी . परहित सरस धर्म नहीं भाई , परपीड़ा सम नहीं अधमाई .

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय रेखा श्रीवास्तव जी
नमस्कार !
अपनी कहाँ याद आई हैं?
यही है जिन्दगी मेरी
जिसे
मैंने अपने हाथों से बनायीं है।
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तकदीर मुस्करा कर
मुझसे ये बोली,
कहर ढाने में मैंने
कोई कसर नहीं छोड़ी,
फिर कहाँ से ?
तुमने चेहरे पर मुस्कान ओढ़ी।
...
तकदीर तू अपनी जगह है
मुस्कान मेरी साँसें हैं
कहर की हर लकीरों में
खुदा भी साथ रहता है
एक मुस्कान की सौगात लिए

वाणी गीत ने कहा…

तकदीर का लिखा अपनी जगह , उसे जीने का माद्दा अपनी जगह ...
जीतेंगे तो वही जो इसे जीते हैं ...
प्रेरक राचन !

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

मेरी एक ख़ुशी छीनी औ'
मैंने दूसरे के आँसूं बाँट कर
ढेरों खुशियाँ बनायीं हैं।
घिरी हूँ औरों की खुशियों से


prerak panktiyan di...
abhar!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ज़िंदगी जीने का सही जज़्बा ...अच्छी प्रेरणात्मक रचना ..

Dinesh pareek ने कहा…

bahut hi sundar vicharo wali kavitaye hai
labhi mere blog pe aye mere bhi kavitayo ka sanghrah name se blog hai apko jarur pasand ayega

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति...

हरीश सिंह ने कहा…

अच्छी कविता आभार