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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

२३ मार्च पर शहीदों को नमन !

मुझे लिखते देख मेरी सहेली बोली - क्या कर rahi ho? उसे bataya ki aaj शहीद दिवस है कुछ लिखना चाह रही हूँ। तुरंत वह बोली - साल में वही दिन तो आते हैं और तुम हर बार वही लिख कर डालती रहती हो। इससे क्या फायदा? कुछ नया हो तो लिखो, मुझे मजा नहीं आता । मैं उसे कैसे समझाती कि मैं जो लिख रही हूँ वह एक जरूरी चीज है लेकिन गद्य भूल कर लिख बैठी ये पंक्तियाँ --

इतिहास बदल नहीं करता है,
वे तारीखें जो लिखी हैं इसमें,
उनकी इबारत पत्थर पर लिखी है ,
' उस पत्थर पर हमारी
आज़ादी कि इमारत खड़ी है
हम दुहराते हैं उन तारीखों को जरूर
जिन्हें इतिहास में मील के पत्थर भी कहा करते हैं,
घटनाएँ कुछ ऐसी घट जाती हैं,
जो तारीखों का वजन बढ़ा देती हैं।
इतिहास के पन्नों पर वे ही दिन
मजबूर कर देते हैं मानव और मानस को
फिर एक बार उस इबारत को दुहरा लें
शहीद वही, शहादत वही, इतिहास भी वही,
लेकिन इस तारीख के जिक्र पर,
सर झुक ही जाता है इज्जत से
क्योंकि
हमारा जमीर इनको याद करते ही
मजबूर कर देता है नमन करने को
मजबूर कर देता है नमन करने को

मेरी आज २३ मार्च को उनके बलिदान दिवस पर अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि।

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