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सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

ये कैसे रिश्ते?

                    पता नहीं क्यों? कुछ खबरें और कुछ घटनाएँ  कुछ इस तरह से दिल में उतर जाती हैं की रोक नहीं पाती खुद को और न ये कलम रुकने को तैयार होती है.ऐसी ही एक घटना आपसे बाँट रही हूँ लेकिन कुछ कविता के रूप में.
ये कैसे रिश्ते? 
एक विस्फोट हुआ 
औ' जलने लगी दुनियाँ उसकी
वह झोपड़ी में रह गयी,
बचाने को कुछ गृहस्थी और
उठाने लगी थी 
कुछ बक्से में रखे रूपये.
तभी धू धू करता छप्पर 
उसके ऊपर गिरा और 
वह खुद जलने लगी.
कुछ गलत हो रहा था
उसके घर में ,
उसे क्या पता?
दिन भर खेतों में
काम करती और 
रात में लौटती तो 
चूल्हा जला कर पकाती और खिलाती.
वह घर , वह परिवार ,
जो उसने बनाया था
सब ख़त्म हो गया?
पति भाग गया,
बच्चे भाग गए,
ब्याहता बेटी भी 
अपने फंसने के डर से
पति के घर अँधेरे में निकल ली.
पुलिस आई तो
उसके जले शव को
पोस्टमार्टम के   लिए ले गयी. 
कुछ शंका थी,
समाधान भी  उससे ही होना था.
बारूद की गंध से 
कुछ सुराग मिलेगा.
दूसरे दिन 
पोस्टमार्टम हाउस के सामने
कोई नहीं था.
बस पांच औरते आयीं थी.
सोचा कोई घर वाली होंगी,
रिश्तेदार होंगी?
या फिर पड़ोसी होंगी?
पूछा कौन है वे इसकी?
कोई नहीं!
खेत में साथ काम करती थी.
सुना तो देखने आ गयीं.
कल तक तो जिन्दा थी.
रोज मिलते थे,
अब सोचा कि आखिरी दर्शन कर लें.
उसका कोई घर वाला 
कोई भी नहीं आया 
तीन बेटे , दो बेटियाँ ,
और उसका बाप कोई भी नहीं.
इस मिट्टी का क्या करें?
कोई नहीं तो हमको दे दो,
पाँचों ने कन्धा देकर 
उसे श्मशान पहुँचाया.
धोती के छोर में बंधे 
रुपये इकट्ठे किये 
आज तीन दिन की मजदूरी मिली थी.
उसका क्रियाकर्म किया.
दूर देखा तो
उसका बेटा तमाशा देख रहा था.
पुलिस पर नजरें पड़ीं तो 
भाग गया .
ये कौन सा रिश्ता था?
जिसने कन्धा दिया,
तीन दिन की कमाई उसकी
अंत्येष्टि में लगाई
और दो आँसू गिरा कर 
श्रद्धांजलि दे दी.
ये वो रिश्ता है,
जो न खून का है,
न पैसे का है ,
और न ही स्वार्थ का है.
निस्वार्थ, मानवता में लिप्त 
ये रिश्ता ही तो
इस धरती पर टिका है.
जिसने डगमगाती धरा को
संतुलित किया है और
इसी को तो हमने 
मानवता का नाम दिया है.

8 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

निस्वार्थ, मानवता में लिप्त
ये रिश्ता ही तो
इस धरती पर टिका है.
जिसने डगमगाती धरा को
संतुलित किया है और
इसी को तो हमने
मानवता का नाम दिया है


-इन्हीं से मानवता जिन्दा है. उम्दा रचना.

POOJA... ने कहा…

bahut hi pyaaree rachna... maanveey rishton se ot-prot...

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

ufffffffffff!!

aise rishte ko salam!!
bahut pyari rachna.....

मनोज कुमार ने कहा…

मानवीय संवेदना ही तो जगत का आधार है।

मनोज
राजभाषा हिन्दी

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही मार्मिक कविता है....
मन के रिश्ते ही असली रिश्ते होते हैं

सुनील गज्जाणी ने कहा…

rekha mem
pranam !
achchi rachna hai ,
badhai !
sadhuwad !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच कहा ... मानवता का रिश्ता तो जब तक मानव हैं जिन्दा रहेगा ... ये जरूर है क़ि अपनों में मानवता क़ि कमी होती जा रही है .... मार्मिक रचना है ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मानवीय संवेदनाओं को उजागर करती अच्छी रचना