इम्तिहान मेरे सब्र का कुछ
इस तरह तो मत लीजिये.
फूल तो मांगे नहीं मैंने,
काँटों की सजा तो मत दीजिये.
हर गम कुबूल मैंने कर लिया,
अश्कों पर तो मुझे हक दीजिये.
किस तरह झेलूँ तेरी ये बेरुखी,
आँखें बंद करने का वक्त तो दीजिये.
छुपा लूंगी सारे जख्मों को सीने में,
लम्हे लम्हे का हिसाब तो मत लीजिये.
कौन सा लम्हा किसकी अमानत हो?
इसको तो खुद तय मत कीजिये.
इम्तिहान मेरे सब्र का कुछ
इस तरह तो मत लीजिये.
15 टिप्पणियां:
वाह आज तो अलग ही अंदाज़ है ...बहुत खूबसूरत ...
किस तरह झेलूँ तेरी ये बेरुखी,
आँखें बंद करने का वक्त तो दीजिये
वाह वाह वाह ..बहुत खूब.
वाह वाह , आज तो आप शायराना अंदाज में है . कानपुर में तो बरसात भी नहीं हो रही है . हा हा
सच आज तो अलग अंदाज है |
देखिये ऐसे ही तो आया कीजिये
हर गम कुबूल मैंने कर लिया,
अश्कों पर तो मुझे हक दीजिये.
-बहुत अच्छा है.
.कौन सा लम्हा किसकी अमानत हो? इसको तो खुद तय मत कीजिये.
इम्तिहान मेरे सब्र का कुछ इस तरह तो मत लीजिये.
क्या बात है...दिल की गहराइयों से निकली ग़ज़ल लग रही है...अति सुन्दर
कौन सा लम्हा किसकी अमानत हो?
इसको तो खुद तय मत कीजिये.
वाह बहुत सुन्दर नज़्म है। बधाई।
आशीष ,
क्या सुबह से कोई मिला नहीं , क्यों मजाक बना रहे हो? आज तो बारिश नहीं हो रही लेकिन मन बरस पड़ा तो क्या करें?
कौन सा लम्हा किसकी अमानत हो?
इसको तो खुद तय मत कीजिये.
waah
क्या खूब लिखा है...वाह...बहुत अच्छी रचना...
नीरज
आंतरिक करूणा से भरा है!
waqy me mujhe to dukha is bat ka hai ki mene pahli bar me hi is gazal ko kyun nahi pada
bahut achhi lagi
सब्र का हो इम्तिहां तो इस तरह
तू कहे कि, बस बहुत अब हो गया।
वाह जी क्या बात है...बहुत ही शिकायतों से भरी गज़ल है. हर शेर लाजवाब.
बेहतरीन ग़ज़ल। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार-परिवार
एक टिप्पणी भेजें