मन थिरक थिरक जाए
किसी आशा की ख़ुशी में,
उड़ा दे जिन्दगी के गम और
निराशा को कभी हंसी में.
मलिन नहीं मन हुआ कभी
देख कर जिन्दगी की धूप भी ,
मोह न सका कभी स्वर्ण मृग
औ' दमकता कृत्रिम रूप भी.
हकीकत के गर्म पत्थरों पर
नंगे पाँव चलना मजूर था,
अँधेरे में लड़खड़ाए तो थे कदम
क्योंकि आशा का वो दीप दूर था.
टूटा नहीं हौंसला सब कुछ गवांने पर
शेष थी कुछ खोकर पाने की आशा,
बदल गए प्रतिमान इस सफर में
शायद यही है जिन्दगी की परिभाषा.
5 टिप्पणियां:
nice
टूटा नहीं हौंसला सब कुछ गवांने पर
शेष थी कुछ खोकर पाने की आशा,
बदल गए प्रतिमान इस सफर में
शायद यही है जिन्दगी की परिभाषा.
... bahut badhiyaa, tabiyat kaisi
टूटा नहीं हौंसला
सब कुछ गवांने पर
शेष थी कुछ खोकर
पाने की आशा,
बदल गए प्रतिमान
इस सफर में
शायद यही है
जिन्दगी की परिभाषा
सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति
होसला टूटना ही नहीं चाहिए ..
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति.
जिंदगी की परिभाषकोई नही नही निश्चित कर सका ... सबकी अपनी अपनी परिभाषा है ... आपकी रचना बहुत लाजवाब है ..
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