इन्तजार
किसी अच्छे पल का
कितना मुश्किल होता है?
लगता है
ठहर गयी काल की गति
सुइंयाँ रुक गयीं
सूरज और चाँद भी
रुक गए हैं
किसी इन्तजार में.
बयार गगन में सहमी सी
किसी संकेत के इन्तजार में
अधर में लटकी सी
त्रिशंकु बनी है.
और हम
सांस थामे
देख रहे हैं
ऐसे काल परिवर्तन की राह
जिस काल में
रामराज्य हो न हो
महाभारत सा
अपमान, षडयंत्र औ'
विनाश न हो ,
जहाँ गीता के उपदेश
सिर्फ पांडवों को
समझ आते हैं,
कौरवों की सेना तो
सिंहासन की चकाचौध में
जय हो, जय हो,
के साथ अनुगामी बनी है.
वह परिवर्तन
सोचते हैं
पतझड़ हो कुविचारों की
विचारों में क्रांति हो.
और नव पल्लव की तरह
सुरचिता अपने नव रूप में
बसंत सी खिल उठे.
शुक्रवार, 11 जून 2010
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16 टिप्पणियां:
intzaar kisi achhe pal ka .... antheen hi rah jata hai
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
आईये पढें ... अमृत वाणी।
bahut achhi kvita injar ka intjar karti hui kvita ka
सुंदर पोस्ट
सुंदर पोस्ट
बहुत बढिया !!
बहुत ही प्रभावी कविता...आखिर ये इंतज़ार कब ख़त्म होगा...या अंतहीन ही रह जायेगा.
कहते है ना की इंतजार का फल हमेशा मीठा होता है , और इंतजार का अपना मज़ा . परिवर्वन को परिवर्तन कर लीजिये . और अगर धरती पर कौरव रूपी अधर्मिता ना विद्यमान हो तो गीता का क्या काम और पांड्वो का क्या काम. अंतहीन इंतजार , एक सुविचार .
Thanks ashish, correction kar diya hai.
अब ये अंतहीन इंतज़ार है तो सच ही अंतहीन ही रहेगा....सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
bas yahi vichaaron ki kranti ka intzaar kar rahe hain....
वाह!! बहुत सुन्दर!
मंगलवार 15- 06- 2010 को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है
http://charchamanch.blogspot.com/
bahut sunder shaakt abhivyakti. jo vichar karne par mazboor karti he.
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