तिरंगे में लिपटे
इन वीरों को सलाम.
क्या इस नमन तक ही
हमारे कर्तव्यों की है
इति श्री.
फिर पढेंगे कोई
दूसरी खबर
पर उस खबर के पीछे
क्या बचा सकते है खुद को?
उन चीत्कारों से
निर्बाध बहते आंसुओं के प्रवाह से
कैसे रहेगी ये सूनी गोद ?
कैसे जियेगी ये सूनी मांग?
कौन संवारेगा
इन मासूमों के सिसकते औ'
दरकते भविष्य को?
अफसोस तो इस बात का है
इसी जमीन की उपज
इसी के पंचतत्वों से बने
कैसे
अपनी ही माँ की कोख में
बारूद भरते गए.
रोई बहुत होगी
अपने ही लालों के काम पर.
वे मरे तो हुए अमर
तुम तो अब
सबकी नज़रों में
जीते हुए भी मर गए.
शक्ति , सत्ता या धन की
हवस हो
इनमें लिपट कर एक दिन तुम भी चले ही जाओगे.
मौत को खेल
बनाने वाले
खिलौना बना
मौत तुम्हें
एक दिन ले जायेगी.
फिर पता नहीं
कितने टुकड़ों में
बिखरे तुम
और उनको
बीन बीन कर
कोई निर्दोष माँ, पत्नी और बच्चे
इसी तरह से चीत्कार करेंगे.
औ' मानवता तब
थूक तुम्हीं पर जायेगी.
वे गए तो वतन की राह में
कुर्बान हो
उन्हें मिला
शत शत नमन
पर तुम्हें तो
किसी दिन
गुमनामी के अँधेरे में
कभी और कहीं भी
ये मौत तुम्हें ले जायेगी.
कफन मिलेगा या नहीं
कहीं पशुओं का
आहार बन
जंगल के किसी कोने
बस लाश पड़ी रह जायेगी.
बस लाश पड़ी रह जायेगी.
3 टिप्पणियां:
मन बहुत क्षुब्ध है .... सारा देश ही आक्रोशित है इस वक़्त...पर वही...निर्णय लेने वाले,कार्यान्वित करने वाले...निष्क्रिय...अपनी स्थिति से संतुष्ट बैठे हैं... जब भी कोई ऐसी घटना होती है..लोग नाराज़ होते हैं..परेशान होते हैं...और फिर सबकुछ शांत पड़ जाता है,जबतक दूसरी घटना ना हो जाए
कविता ने झकझोर कर रख दिया है...
jawanon ko salaam.......kahne ko kuch nahi hai
दुखद एवं अफसोसजनक घटना!
शहीदों को नमन एवं श्रृद्धांजलि!
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